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________________ 81. आज के ज्ञानी, कहना तो बहुत जानते हैं, परन्तु करना भूल गये। इसलिए उनकी बात का असर नहीं होता । 82. माता-पिता भगवान् का सहारा लेते हैं, तो उनके बेटे अपने आप उनका सहारा ले लेंगे । 83. लौकिक शुद्धि तो हो सकती है, लेकिन परमार्थभूत कोई शुद्धि शरीर की नहीं होती। 84. श्रमण की दशा देखो, जब आहार लेने जाते हैं, तब भी निर्जरा करते हैं और मल विसर्जन करने जाते हैं तब भी निर्जरा करते हैं। योगी में और भोगी में कितना अन्तर है ? 85. 'जो त्यागी, योगी और अतिथि का सत्कार किए बिना भोजन कर लेता है, वह निशाचर है। 86. वस्तु को मत बिगाड़िए, वस्तु को मत बदलिए, अपनी दृष्टि को फेर लीजिए । 87. वैराग्य का अर्थ निमित्तों का नाश मत समझना । वैराग्य का तात्पर्य है, पर भावों दृष्टि को मोड़ लेना । निज स्वभाव में दृष्टि ले जाने, इसी का नाम वैराग्य है। 88. इन्द्रियों को वश में नहीं करना पड़ता, इन्द्र (आत्मा) को वश में करना पड़ता है। 89. जब विषयों का व्यापार शान्त हो जाता है, चित्त थक जाता है, तब ज्ञानी ! भगवान् आत्मा निर्विकल्प नजर आता है । 90. दो द्रव्यों में क्रियावती शक्ति है- जीव और पुद्गल में । 91. श्रद्धापूर्वक जिन वचन जो सुनता रहेगा, वह छटवें काल में कभी नहीं आयेगा । 92. दान में दिया गया द्रव्य और पड़ोसी को दिया गया द्रव्य दोनों में बहुत अन्तर है। 93. काना पौड़ा पड़ा हाथ यह चूँसे तो रोवे । फलै अनन्त जो धर्मध्यान की भूमि विषै वोवे ॥ 94. आत्मा सर्वथा न तो वक्तव्य है और न अवक्तव्य है । 95. जन्म लेना और जन्म देना ये तो पशु भी करना जानते हैं। परन्तु जन्म-मरण से मुक्त कैसे होना? इसे मनुष्य मात्र जानता है । 96. दूसरे को समझाने के लिए ज्ञान चाहिए, जबकि स्वयं को समझाने के लिए विवेक और धैर्य चाहिए । 120 Jain Education International For Personal & Private Use Only • स्वरूप देशना विमर्श www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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