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62. आपके मस्तिष्क से कम्प्यूटर की रचना हो सकती है, कम्प्यूटर से किसी ___मस्तिष्क की रचना नहीं हो सकती। 63. ज्ञान आत्मा का ही गुण है, ऐसा जानना चाहिए । 64. आहार, भय, मैथुन और परिग्रह ये चार संज्ञाएं हैं। 65. आए राम गये राम, आत्माराम सदा राम । 66. 'अर्पितानर्पित सिद्धे।' - मार्ग बन्द नहीं मार्ग जारी है, बस किसे मुख्य करें, किसे गौण करें यह ध्यान
रखना पड़ता है। 67. गुण गुणी से भिन्न नहीं है। 68. जिनशासन हाँजू-हाँजू का नहीं है। यह सिंह की दहाड़ के समान है। 69. भारत भूमि में मुख्य श्रवण संस्कृति है। आर्यों के आने के पहले यहाँ श्रमण थे।
इतिहास पढ़ो। 70. मेरी आत्मा का जो ज्ञान गुण है, वह नट का खेल नहीं है, दीपक की ज्योति है।
दीपक स्वयं को भी प्रकाशित करता है और पर को भी प्रकाशित करता है। 71. ‘स्याद्वाद वाणी जयवन्त हो। वह एकान्तमयी नहीं, अनेकान्तमयी वाणी है। 72. अरहंत की भक्ति पूर्व कर्मों का क्षय करा देती है। 73. स्वजातीय उपचरित असद्भूत व्यवहार नय से स्त्री पुत्र आदि आपके हैं। 74. छोटे को देखकर मोटे होकर इतराओ मत। 75. जो उपकारी के उपकार को भूल जाता है, जगत् में उससे बड़ा पापी नहीं है। 76. लोक में हीन भावना ही सबसे बड़ा रोग है। 77. जिन-जिन निमित्तों से हीन भावना आती है, ऐसे निमित्तों को देखना बन्द कर
दो। 78. यदि पूर्वाचार्यों के मन में भाव नहीं आता कि जिनवाणी की रक्षा कैसे हो? तो
हमारे पास क्या बचता? 79. आचार्य भगवन् भद्रबाहु स्वामी के समय से लेखन शुरू हो जाता, तो आज ___ हमारा श्रुत कितना अपूर्व-अपूर्व होता। 80. पर्याय के सुन्दर होने से मोक्ष नहीं होता, परिणति के सुन्दर होने से मोक्ष होता
स्वरूपदेशना विमर्श
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