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41. स्वप्न में भी किसी को गाली दी, तो वह कर्म बन्ध का ही कारण है। 42. आप मुझे सुनने नहीं आते हो, असिद्ध को सिद्ध करने के लिए आते हो। 43. अनिष्ट भी इष्ट होता है। 44. अनन्त भटके जीव न हों, तो भगवान की क्या जरूरत? 45. “सबके दिन एक से, सब दिन एक से नहीं होते।' 46. धर्म का नाश करके धर्म प्रचार की बात की जाए, वह धर्म कैसा? 47. जो जीवन व मरण को मिटाने के लिए मुनि बने, वह महाज्ञानी है। 48. पुण्य-द्रव्य के अभाव में हाथ पैर के पुरूषार्थ कार्यकारी होते नहीं विश्वास
रखना। 49. भो ज्ञानी! अमृतचन्द्र स्वामी ने पैसा ग्यारहवा प्राण कहा है। इसलिए चोरी मत
करो। 50. एक बेचारा सोते-सोते सामायिक नहीं कर पाया और एक सोते हुए को
देखते-देखते सामायिक नहीं कर पाया । चलो तुम दोनों प्रायश्चित लो। जैन
दर्शन हर नीति को जानता है। 51. मात्र आपको अपनी श्रद्धा को व्यवस्थित करने की आवश्यकता है। 52. कषायों की लीनता में जो ले जाए, ज्ञानी! वह अज्ञान नहीं अज्ञान धारा है। 53. मिथ्यात्व की पुष्टि में ले जाए, वह सद्बोध नहीं अज्ञान धारा है। 54. कूटनीति/कुनीति में ले जाए, वह अज्ञान धारा है। 55. द्रव्यदृष्टि से दूर कर दे और द्रव्य में दृष्टि डाल दे, वह अज्ञान धारा है। 56. ध्रुव सत्य यह है कि जो ज्ञान है, जिन शासन में सम्यक् ज्ञान को ही ज्ञान कहा
57. जिससे तत्व का बोध हो, जिससे चित्त का निरोध हो, आत्मा का शोध हो, उसे
जिनेन्द्र के शासन में ज्ञान कहा है। 58. भेद से अभेद की ओर ले जाए, खण्ड से अखण्ड की ओर ले जाए, उसका
नाम सम्यग्ज्ञान है। 59. खण्ड-खण्ड परिणामों को अखण्ड कर दे, उसका नाम सम्यग्ज्ञान है। 60. टूटे हृदयों को जो जोड़ दे, उसका नाम ज्ञान है। 61. हाथ में दीपक, ज्ञानी फिर भी गड्डे में गिर जाए तो इसमें दीपक का क्या दोष? (118
-स्वरूप देशना विमर्श
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