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________________ द्रव्य-दृष्टि, पर्याय-दृष्टि में द्रव्य-दृष्टि ही श्रेष्ठ है, जो मोक्षसुख दिला देगी और पर्याय-दृष्टि नीचे ही भेजेगी,इस भाव को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि......... "चौदहवें गुणस्थान में विराजे सकल परमात्मा वे परा' आत्मा हैं और आप सब 'अपर' आत्मा हो। थोड़ा तो समझो, मैं क्या कह रहा हूँ। परा अर्थात् उत्कृष्ट। वे उत्कृष्ट आत्मा हैं, इसलिए परमात्मा हैं और आप सब अपर आत्मा हो, हीन आत्मा हो । ज्ञानियो! परमात्मा बनना है तो परिणामों को परा करो, परिणामों को श्रेष्ठ करो। पर्याय-दृष्टि से दृष्टि मोड़ लो, द्रव्य-दृष्टि पर दृष्टि करलो। धन्य हैं परमात्मा । _ "पर्याय दृष्टि नरकेश्वरा, द्रव्यदृष्टि महेश्वरा।" 30 जितने नरकेश्वर बनने वाले हैं, वे सब पर्याय में लिप्त मिलेंगे, मिलने ही चाहिए। जिनको नरकेश्वर बनना हो वे सब पर्याय में लिप्त हो जाआ। अपनी पर्याय में लिप्त हो जाओ और पर की पर्याय में लिप्त हो जाओ बड़े आनन्द के साथ, प्रेम से। बिना किसी रोक-टोक के सहज टपक जाओगे, नरकेश्वर बन जाओगे। यदि परमेश्वर बनना है तो द्रव्य-दृष्टि लानी पड़ेगी। ये धन-पैसे वाली नहीं द्रव्य-दृष्टि की बात करो। 7. उपसंहार उद्धरित अनेक उद्धहरणों से विषय की प्ररूपना को विराम देते हुए उपसंहार रूप इतना ही सार है, कि “संसार सागर से तरना हो तो प्रत्येक मुमुक्षु को पर्याय-दृष्टि से हटकर 'मैं पुरान हूँ, पुमान हूँ। मैं अजन्मा हूँ, अहेतुक हूँ, इस परम द्रव्य-दृष्टि की प्राप्ति के लिए उद्यम करना होगा । आलेख मुख्यतः सात खण्डों से प्रवाहित हुआ है। (1) जैन धर्म – दर्शन पक्ष (2) आचार्य भट्ट अकलंक देव मूल ग्रन्थकर्ता- एक दृष्टिक्षेप (3) स्वरूप संबोधन की भूमिका (4) स्वरूप देशना और देशनाकार आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज- दृष्टि (5) द्रव्य-दृष्टि, पर्याय-दृष्टि __(1) स्वरूप-संबोधन के परिपेक्ष में... (2) स्वरूप-देशना के परिपेक्ष में... (6) उद्धहरण (7) उपसंहार स्वरूपदेशना विमर्शJain Education International 111) www.jameliorary.org For Personal & Private Use Only
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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