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नहीं समझे! अब लड़ोगे कूँजड़ों के यहाँ जाकर?' 44
"यज्जीवस्योपकाराय, तद्देहस्यापकारकम्।
यद् देहस्योपकाराय, तज्जीवस्यापकारकम्॥" 45 जो देह का उपकार करना चाहता है, वह जीव का अपकार करता है और जीव के उपकार से देह का अपकार नियम से होगा। आज जो समाज में, देश में विपरीतता प्रवेश कर रही है, रक्त देने को 'रक्तदान' संज्ञा दी जा रही है। उसकी अनुचितता दर्शाने के लिए 'रक्तदान' निषेध करते हुए कहा है, जब कोई प्रश्न करता है, रक्त देने से व्यक्ति की मृत्यु टल जाती है, अगर वह बच जायेगा, तो धर्म करेगा? धर्म करने के लिए अधर्म मत करना । ऐसा कहकर, रक्तदान से जीव का अपकार नियम से है, जिसकी पर्याय दृष्टि है वही देह का उपकार करेगा और जीव का अपकार नियम से होगा ही। पुण्य रूपी/आयु रूपी जल मात्र चुल्लुभर है, चाहे देह रूप बगीचे को खिला दो या जीव रूपी बगीचा को सिद्ध अवस्था रूप फलित करा देना । जीव का उपकार द्रव्य-दृष्टि है, शरीर का उपकार पर्याय-दृष्टि है। पृष्ठ 384 में गजरथ के दृष्टान्त से कहते हैं.......
“बुन्देलखण्ड में गजरथ की परम्परा है। पहले व्यक्तिगत गजरथ चलते थे। कोई सेठ बनता था, कोई सिंघई बनता था। और भैया! खाने को घी भले न हो, परन्तु गजरथ के चक्के में घी डालेगा, कहीं चीक न आए । अन्यथा चीके सिंघई बन जाएंगे। बड़े भैया ने गजरथ चलवाया, लेकिन क्या करो? मन के मुटाव बड़े विचित्र होते हैं। छोटे भैया को नहीं बुलाया। भैया ध्यान से सुनना। इतनी छोटी सी बात हमारी मानकर चलना । एक बार बेटे को चाहे खाने को न मिले रात को सहला करके पुचकार कर सुला देना, परन्तु भैया को भूखा मत सोने देना । कारण क्या है? हे ज्ञानी!छोटा भैया न होता तो तुझे बड़ा भैया किसने बनाया? इन छोटे भाईयों को भूल मत जाना । गजरथ चलवाया, परन्तु छोटे भैया को नहीं बुलाया और क्या किया? साले- साहब को उपरिम मंजिल में अपने बगल में बिठाया । अब क्या करें? देवी का डर लगता था? घूमते-घामते पत्रकार महोदय छोटे भैया के पास पहुँच गया । कहता है धीरे से सिंघई जी-सिंघई जी। रथ अच्छे चल गए । भैया तो रथ की एक भी फेरी में गया नहीं, परन्तु सगा भैया घर में बैठा 'सिंघई हो गया और सातों फेरियों में साला बगल में बैठा रहा, उसको किसी ने 'सिंघई नहीं कहा | ध्यान दो सातों फेरियों में साला साथ में रहा, लेकिन सिंघई नहीं कहलाया, लेकिन घर में बैठा सगा भैया रथ की एक भी फेरी में नहीं गया, फिर भी सिंघई बन गया।
स्वरूप देशना विमर्श
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