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व्यक्ति की दृष्टि ही बन्ध-निर्जरा का कारण है। दृष्टि जीव द्रव्य पर है तो निर्जरा है, अजीव-पर्याय पर हो तो बंध नियम से है। आचार्य भगवन् कुन्दकुन्द स्वामी समयसार जी में कहते हैं............
" जीवेव अजीवे वा संपदि समयम्हि जत्थ उवजुत्तो।
तत्थेव बंधमोक्खो हवदि समासेण णिद्दिट्ठो॥ जीव अजीव के दृष्टान्त पूर्वक हमारी दृष्टि में बन्ध-मोक्ष निहीत है, यह आचार्य भगवन् कहते हैं। अगर द्रव्य पर दृष्टि है, तो द्रव्य दृष्टि नहीं प्राप्त कर पाओगे, भगवान् नहीं बन पाओगे । उपयोग की, दृष्टि की निर्मलता कैसे हो जिससे हम भी निर्बन्ध हो सकें? यह करूणा वश हमें बताते हुए कहते हैं कि ..............
“एक पिता ने बेटे से कहा कि मैं दर्शन करके आता हूँ, तू साग लेके आना । वो दर्शन करने चला गया। बेटे ने क्या किया कि उस साग मण्डी में कूँजड़े ने कहा कि दस का नोट, तो बेटे ने दस का नोट दे दिया और तुरन्त सांग लेके आ गया। पिताजी जब दर्शन करके आए, तो पूछता है - क्यों तू क्या करके आया? बोला साग लेकर आया हूँ। कितना नोट दिया? बोला- दस माँगा, सो दे दिया बनिया का लड़का।तू पागल है। मुझे देखना, मैं कैसे साग लेके आता हूँ। दूसरे दिन वह कूँजड़ें के यहाँ जाता है।कूँजड़ा कहता है दस रूपये । नौ दूंगा। पन्द्रह मिनट उसने कूँजड़े से लड़ने में लगा दिये और नौ देके मुस्करा के घर आकर कहता है बेटे! देख मैं नौ देके आया हूँ। बेटा था समझदार वो मेरे साथ रह चुका था। पिताजी! आप पागल । अब शास्त्रीजी का चेहरा बिगड़ गया कि बेटा मुझे ही पागल कह रहा है। हाँ आप पागल नहीं तो क्या हैं? आप इतने बड़े पंडित के लड़के और स्वयं पंडित हो करके आपको ये मालूम नहीं था? एक रूपये के राग में तीन लोक के नाथ को छोड़ करके सुबह से दर्शन करने नहीं गया, कूँजड़े को देखने गया। फिर भगवान् छोड़े और क्या? जब आप कूँजड़े से बोल रहे थे कि मैं दस नहीं नौ दूँगा, उस समय वीर्यान्तराय कर्म का क्षयोपशम नष्ट हो रहा था कि नहीं? पिताजी! उस समय आपका ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम नष्ट हो रहा था कि नहीं? आयुकर्म क्षय हो रहा था कि नहीं? आप क्या ज्ञानी निकले? इतनी सारी सम्पत्ति एक रूपये के पीछे देके आ गये, मैंने एक नोट पटका और अपनी रक्षा करके आ गया, बताओ ज्ञानी कौन है? एक सिक्के के पीछे
ऑटो रिक्शा वाले से लड़ रहा था । एक सिक्के के पीछे भाजी वाले से लड़ रहा था, फिर मालूम चला कि अंतिम श्वास का समय आ गया । डॉक्टर से कहता है बेटा, कि तुम जितने लाख हजार रखवाना सो रखवा लो। 5 मिनट के लिए 5 लाख देने को तैयार । धिक्कार तुम्हारी बुद्धि के लिए । अब समझ जाओ कि मैं क्या कह रहा हूँ? (108)
-स्वरूप देशना विमर्श
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