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नयनों से नीर टपक गया, स्वरूप-संबोधन’ हो गया । यही तो स्वरूप-संबोधन है।' ऐसा कथन कर ग्रन्थ के नाम की यथार्थता को बताया है।
ग्रन्थ के मंगलाचरण पर देशना देते हुए, वस्तु व्यवस्था का कथन करते हुए कहते हैं. ___ "ध्यान देना यदि प्राणी वस्तु-स्वतंत्रता पर किंचित भी ध्यान देता तो उसके नयनों में नीर उसी क्षण समाप्त हो जाते । जिसको वस्तु विवक्षा, वस्तु व्यवस्था, वस्तु स्वतंत्रता का भान नहीं है, वही रो रहा है। छह द्रव्यों में आपके द्वारा कोई परिवर्तन नहीं है। जगत् का प्राणी राग-द्वेष ही कर पायेगा, लेकिन वस्तु व्यवस्था को भंग नहीं कर पायेगा । जगत के कर्ताओं! तुम जगत का कुछ नहीं कर पाओगे, परन्तु जगत् कर्तृत्व भाव से आप अपनी पर्याय को जरूर विपरीत कर सकते हो। समझ में आ रहा है? राग-द्वेष के ही कर्ता आप हैं, लेकिन वस्तु के कर्ता नहीं हैं। 2 ___ इस कर्तृत्व का खण्डन करने के लिए पिता-पुत्र का दृष्टान्त देते हुए कहते हैं कि___ जनक सोचता है कि मैं पुत्र का कर्ता हूँ और वह अहं में डूबकर बोलता है कि बेटे मैंने तुम्हें जन्म दिया है। परन्तु पिताश्री! तुम भूल गये हो इस बात को कि जिस क्षण तुमने बेटे को जन्म दिया था, उस क्षण बेटे ने आपको भी जन्म दिया था । यदि बेटे का जन्म नहीं होता तो आपको पिता कहने का अधिकार कौन देता?....... लेकिन अहो जनको! तुम सत्य बताना कि जब तुम अपने जनक नहीं हो, तो पुत्र के जनक कब से हो गए? छः द्रव्य कालिक हैं, जीव द्रव्य का कोई जनक आज तक हुआ ही नहीं है। पुदगल द्रव्य का कोई जनक नहीं हुआ। धर्म, अधर्म, आकाश, काल द्रव्य का कोई जनक नहीं हुआ है। ये पारिणामिक भाव में रह रहे हैं, इनका कोई जनक नहीं है। हे जीव! तू अपने रागादिक भावों का जनक तो है, तू अपने शुभाशुभ परिणामों का जनक तो है, परन्तु.जिसमें शुभाशुभ परिणाम हो रहे हैं उस परिणामी का जनक तू भी नहीं है। ......... हे जनक! तू वास्तव में जनक किसी का है तो, अपनी काम इच्छाओं का जनक है, तू अपने पुत्र का जनक नहीं है। .......... उपादान दृष्टि से जनक किसके हो? पुत्र पर्याय के जनक हो कि आत्मा में हर्ष-विषाद पर्याय के जनक हो?"
इस प्रकार व्याख्यान कर द्रव्य-दृष्टि से द्रव्य की त्रैकालिकता बताई है।
ज्वलन्त सामाजिक समस्या भ्रूण हत्या का कारण द्रव्य-दृष्टि का अभाव और पर्याय दृष्टि में लीनता ही है। समस्या दूर करने के लिए पर्याय-दृष्टि छोड़कर स्वरूप देशना विमर्श
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