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________________ और सेवन करता है, तब भी पाप का बंध करता है। लेकिन धन्य हो श्रमण की दशा को। आहार लेने जाता है तब भी निर्जरा करता है और मल विसर्जन करने जाता है तब भी निर्जरा करता है। योगी में और भोगी में कितना अंतर है? एक रागी मलविसर्जन करने जा रहा है और एक वैरागी उत्सर्ग समिति का पालन करने जा रहा है। एक भोगी भोजन करने जा रहा है, एक योगी एषणा समिति का पालन कर रहा है। तत्त्वज्ञानी भी भोग भोगते कर्म की निर्जरा करता है। ज्ञानी एषणा समिति का पालन कर रहे हैं, वहाँ पर भी दृष्टि है कि मेरी समिति भंग न हो जाए | मल विसर्जन करने भी गये हैं, वहाँ पर भी निहार रहे हैं कि किसी जीव की विराधना न हो जाए। निश्छिद्र भूमि है, स्थिंडिल (प्रासुक) भूमि है और वहाँ खड़े होकर निहार रहे हैं। जिसे निहार रहे हैं, उस बात को सुनो! आप लोग आश्चर्य करोगे कि महाराज! क्या करते हो? मल के पिंड को भी देख रहे हैं एक दृष्टि से ।" 26 संसार की असारता, संसार में होने वाला संयोग-वियोग का कथन करते हुए कहते हैं........ दूसरे श्लोक के अन्तिम चरण में "स्थित्युत्पत्तिव्ययात्मकः।” 13 पर टिप्पण करते हुए द्रव्य का जो सत् लक्षण है उसका विस्तार करते हुए कहते हैं..... “यहाँ लगाइये द्रव्य दृष्टि!ज्ञानी जीव का जन्म नहीं जीव का मरण नहीं । पर्याय का वियोग है मरण और पर्याय का संयोग है जन्म । जीव तो त्रैकालिक ध्रुव है। "स्थित्युत्पत्तिव्ययात्मकः।" 13 द्रव्य का लक्षण सत् है, "उत्पाद व्यय धौव्य युक्तं सत्" 12 जो उत्पाद व्यय, ध्रौव्यात्मक हो, वह सत् है। पण्डित जी! ये सब बुजुर्ग क्या बोलते हैं? इन सब बच्चों को क्या आगम की बातें समझ में आयेंगी? यदि समझ में न आती होती, तो एक दिन आते, लेकिन दूसरे दिन नहीं आते। ये है द्रव्य का लक्षण | कूट-कूट कर अन्दर भर लेना। "सद्-द्रव्य लक्षण" 12 द्रव्य का लक्षण सत् है और जो सत् है, वह उत्पाद - व्यय ध्रौव्यात्मक है। जिसमें उत्पाद-व्यय हो रहा है, वही द्रव्य है। लेकिन निहारिए, थोड़ा भीतर जाइये । भाई! वस्तु के स्वभाव को बदल दोगे क्या? नहीं बदल पाओगे। सत्य बोलना । आपके बाल काले हैं कि कर लिए है? भैय्यां | कुछ लगा लिया है न? आप कल्पना करो कि कितना गम्भीर तथ्य है "स्थित्युत्पत्तिव्ययात्मकः।" 13 एक कहते हैं कि मेरा सोच है मैं इन्दौर के सभी लोगों को बदल दूं, अच्छा करूँ अथवा ये बदलने न पाएँ । लोगों की जो मानसिकता है, उस पर ध्यान दो जरा | जो विषय चल रहा है, यदि यह अंदर चला गया। तो मुझे घर की व्यवस्थाएं बनवानी नहीं पड़ेगी, अपने आप बनेगी। कोई बुजुर्ग बताओ भैया! तेरे पिताजी ने कभी तुझे दूध पीने को दिया कि नहीं? दिया है। और मुझे यह अच्छे से विश्वास है कि जितना आज के बच्चे पानी पी पाते हैं उतना आपने दूध पिया स्वरूप देशना विमर्श 101 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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