SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगमोक्त सूत्र को जीवन में यथार्थ उतारने वाले योगियों की चर्चा, आचार्य भगवन् श्री विशुद्ध सागर जी ने समय-समय पर की है, कहा है. "जिनको ज्ञानियो 105 डिग्री बुखार चढ़ा हो, तो आज उस परम तत्त्व को निहारना कि वास्तव में समयसार (द्रव्यानुयोग ) की दृष्टि क्या है? भैय्या ! जिस योगी hat 105 डिग्री बुखार चढ़ा हो और कटनी के जिनालय में मंदिर की वेदी के सामने श्री जी के सामने कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़े होकर सामायिक कर रहे हों। भैय्या आज कोई और जीव होता तो रजाई के अन्दर कराह रहा होता । 105 डिग्री बुखार में वे आचार्य महावीर कीर्ति महाराज कटनी के जिनालय में श्रीजी के सामने कायोत्सर्ग मुद्रा में जाप कर रहे थे, उस आलौकिक दृश्य को देखो, वहाँ का श्रावक कह रहा था महाराज! मैंने आँखों से देखा । वेदी में एक छेद था, उस छेद में से कालिया नाग निकल पड़ा। उस कालिया नाग ने मुनिराज़ की अँगुली को पकड़ लिया। ठहर जाओ, यही तो 'स्वरूप- सम्बोधन' है । एक अँगुली पकड़े है, एक देख रहा है। 'समयसार' ग्रन्थ के अक्षरों को ज्ञेय बनाना बहुत सरल है, परन्तु ज्ञानियो ! कालिया नाग के मुख में ऊंगली हो और ऊँगलीवान, ज्ञेय बना रहा हो। तू जिसे भक्षण करना चाहता है, वह भक्ष्य ही नहीं है और तू जिसे पकड़े है, वह मैं नहीं हूँ ।" 24 "साँप महावीर कीर्ति महाराज की ऊँगली दबाए था और वे कह रहे थे 'ज्ञानी ! है तो देर क्यों है और बैर नहीं तो अंधेर क्यों ? मुझे सामायिक करने दो। तू भी भगवान् आत्मा है और मैं भगवान् बनने जा रहा हूँ।' भगवान् के चरणों में खड़ा हूँ। इतनी सामर्थ्य जिस दिन आ जाए, उस दिन कहना मेरे अन्दर भेद - विज्ञान जग गया। यदि नहीं आई, तब तक अभ्यास करो ।” 25 यही भेद-विज्ञान की दृष्टि रखने वाले आचार्य भगवन् विशुद्ध सागर जी महाराज के जीवन में भी करगुवाँजी क्षेत्र में सदृश्य घटना घटी थी, अंतर इतना था, श्री अपने कक्ष में विश्राम कर रहे थे और कालिया नाग ने ऊँगली दबायी थी । द्रव्य-दृष्टि के धारक मुनिश्री ने भी वही चिन्तवन किया और कालिया चुपचाप निकल गया । इन समयसार भूत श्रमणों की प्रत्येक क्रिया में होने वाली द्रव्य-दृष्टि, तत्त्व दृष्टि दर्शाते हैं. "मूलाचार ग्रन्थ में लिखा है कि एक श्रमण जब शुद्धि को जाये तब दक्षिण दिशा में खड़े होकर उस मल पिंड को निहारे, ठहरना थोड़ा कुछ रहस्य हैं आगम के । भोगी भोग को भोगता ही रहता है। विसर्जन करता है, तब भी पाप का बंध करता है 100 Jain Education International For Personal & Private Use Only -स्वरूप देशना विमर्श www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy