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मुख्य पहलु है। भविष्य की समाज को जानकर देशनाकार की युवाओं के प्रति विशेष करूणा-दृष्टि, उनके लिए दिये उद्बोधक वाक्यों से प्रतिभासित होता है। धारा प्रवाह में ग्रन्थ के श्लोकों के पदों का विस्तार दृष्टांत सहित वक्तृत्वता का ओजस्वीपना श्रोताओं को झकझोड़ देता है। ऐसी अनेक विशेषताओं से युक्त प्रस्तुत ग्रन्थ स्वरूप देशना' है। 5. द्रव्य दृष्टि-पर्याय दृष्टि
दृष्टि अर्थात् किसी वस्तु को देखने का नजरिया अपेक्षा या दृष्टिकोण है। वस्तु तो जो है सो है पर व्यक्ति जैसे उसे देखता है, देखना चाहता है वैसे ही उसे वस्तु प्रतीत होती है। यहाँ चाक्षुस दर्शन की बात नहीं है, अपितु चक्षु या इन्द्रिय से रहित अतिन्द्रिय से होने वाले ज्ञान की सोच की चर्चा है। वस्तु में परस्पर विरोधी अनन्त, अन्त अर्थात् धर्म हैं, नित्य, अनित्य, द्वैत, अद्वैत, अस्ति, नास्ति आदि जिस अपेक्षा की प्रधानता होगी वैसे वस्तु को देखना, कहना या जानना ही दृष्टि है। गुण पर्याय से युक्त है वही द्रव्य है और उसकी सत्ता त्रैकालिक है, वही सत् है और सत् का उत्पाद नहीं होता और व्यय भी नहीं होता है, क्योंकि जो होता है वह होता नहीं और जो होता है वह नहीं होता। यह द्रव्य दृष्टि है। जो द्रव्य का, गुण का विकार है वही पर्याय है। जो द्रव्य का प्रतिक्षण स्व-चतुष्टय में चलने वाला परिणमन / परिवर्तन ही तो पर्याय है। जो हो रहा है वह उसीमें ही होता है, जो होता है, होने वाले को (पर्याय को) देखना पर्याय दृष्टि है। परिणमन होते हुए भी, विकार को प्राप्त होते हुए भी द्रव्य अपने स्वभाव रूपी स्व-चतुष्टय को नहीं छोड़ता, अपनी सत्ता नहीं खोता, पूर्व पर्याय का विनाश, उत्तर-पर्याय का प्रादुर्भाव तो हुआ पर वह विनाश निरवयव विनाश नहीं होता वही धोव्य द्रव्य-दृष्टि है। पर हमें कथंचित् चाक्षुस है, उसे देखना पर्याय दृष्टि है, जैसे शरीरादि को देखना, संभालना, सजाना पर्याय दृष्टि है और उसमें विराजमान भगवान्-आत्मा को निहारना द्रव्य दृष्टि है। (5)I स्वरूप संबोधन के परिपेक्ष में
द्रव्यदृष्टि - पर्यायदृष्टि दोनों ही द्रव्य को जानने के लिए हैं। द्रव्य-दृष्टि, द्रव्य की सत्ता को, तो पर्याय-दृष्टि द्रव्य का परिणमन दर्शाती है। अशुद्ध में शुद्ध को निहारना द्रव्य-दृष्टि है और शुद्ध में शुद्ध, अशुद्ध में अशुद्ध को दृष्टव्य बनाना पर्याय दृष्टि है। वस्तु तो एक ही होती है, द्रव्य तो वही है, जो कि गुण और पर्याय से रहित न था, न है, न होगा । व्यक्ति की जैसी दष्टि होगी वैसा द्रव्य दृष्यमान होगा। दृष्टि द्रव्य पर होगी, त्रैकालिक सत्ता पर होगी तो द्रव्य - दृष्टि और दृष्टि उसके
स्वरूपदेशना विमर्श
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