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१६४ • श्रीनेमिनाथस्तोत्रसङ्ग्रहः यादव वर कुल नहयल उ, भमरुली पयड विसाल दिणेसं । सीस लेस नीय करजोडि उ, भमरुली विनवइ नेमि जिणेस ॥३५।। जम्म-मरणिइं इणि परि उ, भमरुली पूरिअ लोअ असेस । फरिसि चऊदइ रज्जमइं उ, भमरुली वारणंत देस पएसि ॥३६।। पुग्गल परिअट पूरिआ उ, भमरुली आठइ वार अणंत । भमतां मइं भवसायर उ, भमरुली लाधु कह वि न अन्तं ॥३७॥ भमीय भमी हउं ऊसन्नउ उ, भमरुली आवि तुह पाय हेव । माय बाप तूं बंधव उ, भमरुली तुं गुरुं ठाकुर देव ॥३८|| तूं चिंतामणि सुरतरु उ, भमरुली चउगइ गमण मूं वारि । राज-रिद्धि-धण-कण-रयण उ, भणरुली मांग्गउ रमणि न सार॥३९।। बोधिबीज मझ अविचल उ, भमरुली देजे निय पयसेव । इम सामी जे जीनवरू तु उ, भमरुली भविअण भावि नमेवि ॥४०॥ पामइ सुरनर संपद उ, भमरुली सिवसुख भोग रसाल ! । .
आठइ सिद्धि वसई घरि उ, भमरुली अविहड मंगल माल ॥४१॥ वस्तुः
भत्ति पूरिअ भत्ति पूरिअ मणह आणंदि, सिरि रेवयगिरिमण्डणु तित्थराय सिरि नेमिजिणवर, मई सामी इम वीनविउ, आलमाल नयणे जिणेसर । राज-रिद्धि-धण-कण-रमणि-कंचण-रयेण न किं पि,
मागउं भवि-भवि बोहिबीय तह पयसेवा पंति ॥४२॥ कलश:
ईय रेवयगिरि सीरि सुंदर-तिलय नेमि जिणेसरं, वीनवइं अणुदिण जेअ भविअण पणयसव्वसुरेसरं । तवगच्छसुंदरसोमसुंदरसूरिवनिअसंपयं, सिवरमणिपिम्मह हीययवल्लह लहइं ते सुह सासयं ॥४३।।
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