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रैवतगिरिमण्डननेमिनमस्कारस्तोत्रम् • १२७
जिणिसहसंबवणम्मि कियकल्लाणत्रयसार, भविअह भवभयाउपहरइं सामीनेमिकुमार ||२|| धन्नजुव्वण धन्नजुव्वण रुवसंपन्न, रायमई रायमई रायमई जे कणि कन्न छंडिअ, जरइ विरई असईण धुरि मुत्तिरमणि रसरंगमंडिय । उज्जल उज्जल गिरि चडीअ सामीनेमिकुमार, समुद्दविजयसुअ जे नमई धन धन ते नरनारि ||३||
माणमयगल माणमयगल दप्पमाहप्प, उज्जूरण पडवजस मयणमाण केसरि किसोरह, भवभयवारण नेमिजिण दलिअकम्मपब्भारघोरह । मरगय-कज्जल-जलयतणु मोहमल्लपडिमल्ल, जे नर वंदइ भावधुरि ते न भमरं भुवि भुल्ल ॥४॥ जेण भुअबलि जेण भुअबलि हरिअ हरिमाण, खिल्लंत बालपण जेणि चक्क अंगुलि भमाडिय, धणुह चडावीय हरितणउ गदा जेणि गयणि रमाडिय । संख जि पूरिउ बलि करीअ चमकिउ चित्ति हरीस, सिरिगिरिनारिहं जत्र करि बंदउं ते जगदीस ||५||
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