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९२ • श्रीनेमिनाथस्तोत्रसङ्ग्रहः
सिंहासणं विरायइ उवरि पहु ! संठिएण तं तुमण । को वि य सो धन्नो धरिओ सीसेणं जेण पहू ||४३|| भामंडलं पि सोहइ किरिणावलि सच्छहाए कंतीए । धन्नाण संगमेणं, जायइ को वा न तेयड्ढो ||४४|| अप्फालिय तुह पुरओ, दुंदुहिसदो वि सहइ संवलिओ । अवितहपयडियवयणं, ठाणं णु गुणाण संपत्ती ॥४५ ॥ छत्ततय पयासइ तिहुयणमज्झम्मि तुज्झ सामित्तं । संतगुणकित्तणम्मि, होही भण मच्छरो कस्स ? || ४६|| इय एवंविह लच्छी, कत्तो अन्नस्स होइ पुरिसस्स । अमरतरंगिणिसोहं का इयरा गिरिनई लहइ ? ॥४७॥ आसाढ अमीर सुक्के पक्खे पक्खीणकंमंसो । तं ट्ठाणं संपत्तो जत्थ गया न वि से इंति ॥४८ ।। इय नेमिचंदगुणनिहि थुओ मए भत्तिनिज्जरसणेणं । पयडं कुणसु पसायं, भवे भवे बोहिलाभेणं ॥४९॥
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