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164 * बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला विचारकों ने करुणा को एक ऐसा उदारभाव बताया है, जिसके उदय होते ही व्यक्ति के हृदय में सर्वभूतहित की भावना जागृत होती है। करुणा की यही उदारभावना प्रसाद की सभी रचनाओं में मिलती है। 'अजातशत्रु' में गौतम बुद्ध का प्रवेश इसी मंगल-गीत से होता है। वे कहते हैं- विश्व-भर में यदि कुछ कर सकती है तो वह करुणा ही है, जो प्राणिमात्र में समदृष्टि रखती है
निष्ठुर आदि पशुओं की विजित हुई इस करुणा से
मानव का महत्त्व जगती पर फैला अरुणा करुणा से .. इसी नाटक के द्वितीय अंक में भी गौतम बुद्ध का कथन है, “विनय और शील की रक्षा करने में सब दत्तचित्त रहें, जिससे प्रजा का कल्याण हो- करुणा की विजय हो।" ....भूमंडल पर स्नेह का, करुणा का, क्षमा का शासन फैलाओ। प्राणिमात्र में सहानुभूति को विस्तृत करो, इन क्षुद्र विप्लवों से चौंककर अपने कर्म-पथ से च्युत न हो जाओ।"22 यह करुणा ही मानव-हृदय को द्रवीभूत करके अन्य दुःखी हृदयों की पुकार सुनने के लिए बाध्य करती है। कारण यह है कि दुःखी हृदय के नीरव क्रन्दन का सुनना ही वास्तव में करुणा है। 'कामायनी' में श्रद्धा का चरित्र करुणा की भित्ति पर ही निर्मित है, स्वयं कवि ने उसे 'हृदय की अनुकृति बाह्य उदार' कहा है जो समस्त मानवता के प्रति करुणा भाव से आप्लावित है, प्रेम, दया, सहानुभूति उसके चरित्र के प्रमुख गुण हैं। 'तुमुल कोलाहल कलह में' वह हृदय की बात के समान विश्वसनीय है। वह दूसरों की हँसी में अपने सुख का विस्तार देखती है
"औरों को हँसते देखो मनु, हँसो और सुख पाओ। अपने सुख को विस्तृत कर लो सबको सुखी बनाओ।"24
इस प्रकार श्रद्धा विश्व की करुण-कामना-मूर्ति का साकार रूप है जो मनु को पशुत्व-पाश से मुक्त कर एक सच्चा मानव बनाती है और अपने त्याग, तपस्या एवं बलिदान भावना द्वारा जगत का कल्याण करती है। 4. अहिंसा - बौद्ध-दर्शन में अहिंसा को व्यापक अर्थ में ग्रहण किया गया है। बौद्ध-मत में बुद्ध ने कृत, दृष्ट और उद्दिष्ट- इन तीन प्रकारों की हिंसाओं का निषेध किया था। मनसा, वाचा, कर्मणा- इन तीनों प्रकारों से हमें अहिंसात्मक प्रणाली अपनाते हुए असत्य
21. अजात शत्रु, प्रथम अंक, पृ. 28 22. अजात शत्रु, द्वितीय अंक, पृ. 104-105 23. प्रतिध्वनि, पृ. 39 24. कामायनी, कर्म सर्ग, पृ. 55
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