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आगम
(२८-व)
“तन्दुलवैचारिकं” - प्रकीर्णकसूत्र-५ (मूलं+अवचूर्णि:)
------- मूलं [१६.../गाथा ||५६-८२|| ---- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.....आगमसूत्र-२८-वृ], प्रकीर्णकसूत्र-[9] “तंदुलवैचारिक मूलं एवं विजयविमल गणि कृता अवचूर्णि:
प्रत
मत्राका
उच्छासा
दिगणना
[१६]
||५६
-८२||
इवचड ॥३॥ (५८) सत्त पाणूणि से थोवे, सत्त थोवाणि से लथे। लवाणं सत्तहत्तरीए, एस मुहत्ते। [वियाहिए ॥ ४ ॥ (५९) एगमेगस्स णं भंते ! मुहुत्तस्स केवइया ऊसासा वियाहिया ?, गोयमा !-तिन्नि सहस्सा सत्त य सयाण तेवतरिं च ऊसासा । एस मुहुत्तो भणिओ सबहिं अर्थतनाणीहिं ॥५॥ (६०) गा.८२ दो नालिया मुहुत्तो सहि पुण नालिया अहोरत्तो । पन्नरस अहोरत्ता पक्खो पक्खा दुवे मासो ॥६॥ (६१) दाडिमपुप्फागारा लोहमई नालिया उ कायदा । तीसे तलंमि छिई छिद्दपमाणं पुणो बुच्छं ॥७॥ (६२) छन्नउइपुच्छवाला तिवासजाया' गोतिहाणीए । असंवलिया उजा य नायचं नालियाछिदं ॥८॥ (६३) अहवा उ पुच्छवाला दुवासजाया गयकरेणूए । दो वाला अग्भग्गा नायचं नालियाछिदं ॥९॥(६४ अहवा सुवन्नमासा चत्तारि सुवटिया घणा सूई। चउरंगुलप्पमाणा नायचं नालियाच्छिदं ॥१०॥ (६५) उदगस्स नालियाए हवंति दो आढयाओ परिमाणं । उदगं च भाणियत्वं जारिसयं तं पुणो वुच्छं ॥११॥13 (६६) उदगं खलु नायचं कायचं दूसपट्टपरिपूयं । मेहोदगं पसन्नं सारइयं वा गिरिनईए ॥१२॥ (६७) बारसमासा संवच्छरो य पक्खाउ ते उ चउवीसं । तिन्नेव य सढिसया हवंति राइंदियाणं च ॥१३ ॥ (६८) एगं च सयसहस्सं तेरस चेव य भवे सहस्साई । एगं च सयं नउयं हुंति अहोरत्त ऊसासा ॥१४॥ (६९)18 तित्तीस सयसहस्सा पंचाणउई भवे सहस्साई । सत्त य सया अणूणा हवंति मासेण ऊसासा ॥ १५॥ (७०)
॥३२॥ #चत्तारि य कोडीओ सत्तेव य हुंति सयसहस्साई । अडयालीससहस्सा चत्तारि सया य परिसेण ॥१६॥
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दीप अनुक्रम [७४
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