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आगम (४५)
अनुयोगद्वार”- चूलिकासूत्र-२ (मूलं+वृत्ति:)
..... मूलं [१४८] / गाथा ||११८...||
अनुयो. मलधारीया
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प्रमाणद्वार
प्रत
॥२२७॥
सूत्रांक [१४८]
जं भणसि-धम्मे पएसे से पएसे धम्मे जाव जीवे पएसे से पएसे नोजीवे खंधे पएसे से पएसे नोखंधे, तं न भवइ, कम्हा?, इत्थं खलु दो समासा भवंति, तंजहातप्पुरिसे अ कम्मधारए अ, तं ण णजइ कयरेणं समासेणं भणसि ?, किं तप्पुरिसेणं किं कम्मधारएणं?, जइ तप्पुरिसेणं भणसि तो मा एवं भणाहि, अह कम्मधारएणं भणसि तो विसेसओ भणाहि, धम्मे असे पएसे अ से पएसे धम्मे अहम्मे अ से पपसे अ से पएसे अहम्मे आगासे असे पएसे अ से पएसे आगासे जीवे अ से पएसे अ से पएसे नोजीवे खंधे असे पएसे असे पएसे नोखंधे, एवं वयंतं समभिरूढं संपइ एवंभूओ भणइ-जं जं भणसि तं तं सव्वं कसिणं पडिपुण्णं निरवसेसं एगगहणगहियं देसेऽवि मे अवत्थू पएसेऽवि मे अवत्थू । से तं पएसदिटुंतेणं ।
से तं नयप्पमाणे (सू० १४८) प्रकृष्टो देशः प्रदेशो-निर्विभागो भाग इत्यर्थः, स एव दृष्टान्तस्तेन नयमतानि चिन्त्यन्ते-तत्र नैगमो भ
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दीप अनुक्रम [३१०]
का॥२२७॥
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४५], चूलिकासूत्र - [२] "अनुयोगद्वार" मूलं एवं हेमचन्द्रसूरि-रचिता वृत्ति:
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