________________
आगम (४५)
अनुयोगद्वार”- चूलिकासूत्र-२ (मूलं+वृत्ति:)
........ मूलं [१४८] / गाथा ||११८...||
प्रत
सूत्रांक [१४८]
पंचविहो पएसो एवं ते एकेको पएसो पंचविहो एवं ते पणवीसतिविहो पएसो भवइ, तं मा भणाहि-पंचविहो पएसो, भणाहि-भइयव्वो पएसो-सिअ धम्मपएसो सिअ अधम्मपएसो सिअ आगासपएसो सिअ जीवपएसो सिअ खंधपएसो, एवं वयंतं उज्जुसुयं संपइ सदनओ भणइ-जं भणसि भइयव्वो पएसो, तं न भवइ, कम्हा?, जइ भइअव्वो पएसो एवं ते धम्मपएसोऽवि सिअ धम्मपएसो सिअ अधम्मपएसो सिअ आगासपएसो सिअ जीवपएसो सिअ खंधपएसो, अधम्मपएसोऽवि सिअ धम्मपएसो जाव खंधपएसो, जीवपएसोऽवि सिअ धम्मपएसो जाव सिअ खंधपएसो, खंधपएसोऽवि सिअ धम्मपएसो जाव सिअ खंधपएसो, एवं ते अणवत्था भविस्सइ, तं मा भणाहि-भइयव्वो पएसो, भणाहि-धम्मे पएसे से पएसे धम्मे, अहम्मे पएसे से पएसे अहम्मे, आगासे पएसे से पएसे आगासे, जीवे पएसे से पएसे नोजीवे, खंधे पएसे से पएसे नोखंधे, एवं वयंतं सदनयं समभिरूढो भणइ
दीप अनुक्रम [३१०]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४५], चूलिकासूत्र - [२] "अनुयोगद्वार" मूलं एवं हेमचन्द्रसूरि-रचिता वृत्ति:
~456~