________________
आगम
(४५)
अनुयोगद्वार”- चूलिकासूत्र-२ (मूलं+वृत्ति:)
...................... मूलं [१३८] / गाथा ||१०४-१०६|| ...................... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४५], चूलिकासूत्र - [२] "अनुयोगद्वार" मूलं एवं हेमचन्द्रसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक
[१३८]
*
गाथा:
लस्स निरुवक्किट्रस्स जंतुणो । एगे उसासनीसासे, एस पाणुत्ति वुच्चइ ॥१॥सत्तपाणूणि से थोवे, सत्त थोवाणि से लवे । लवाणं सत्तहत्तरीए, एस मुहुत्ते विआहिए ॥२॥ तिषिण सहस्सा सत्त य सयाई तेहुत्तरिं च ऊसासा । एस मुहत्तो भणिओ सव्वेहिं अणंतनाणीहि ॥३॥ एएणं मुहुत्तपमाणेणं तीसं मुहुत्ता अहोरतं, पण्णरस अहोरत्ता पक्खो, दो पक्खा मासो, दो मासा ऊऊ, तिषिण उऊ अयणं, दो अयणाई संवच्छरे, पंच संवच्छराई जुगे, वीसं जुगाई वाससयं, दस वाससयाई वाससहस्सं, सयं वाससहस्साणं वाससयसहस्सं, चोरासीइं वाससयसहस्साइं से एगे पुव्वंगे, चउरासीइ पुव्वंगसयसयस्साइं से एगे पुव्वे, चउरासीई पुव्वसयसहस्साइं से एगे तुडिअंगे, चउरासीई तुडिअंगसयसहस्साइं से एगे तुडिए, चउरासीइं तुडिअसयसहस्साई से एगे अडडंगे, चोरासीइं अडडंगसयसहस्साई से एगे अडडे, एवं अववंगे अववे हुहुअंगे हुहुए उप्पलंगे उप्पले पउमंगे पउमे नलिणंगे नलिणे अच्छनिऊरंगे अच्छ
दीप अनुक्रम [२७५-२७९]
-*-*
~360~