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________________ आगम (४३) प्रत सूत्रांक ||११ -२३|| दीप अनुक्रम [७८३ -७९५] Jain Educato “उत्तराध्ययनानि”- मूलसूत्र - ४ ( मूलं + निर्युक्तिः+वृत्तिः) मूलं [--] / गाथा ||११-२३|| अध्ययनं [२१], अप्पणी अ । सीहो व सद्देण न संतसिज्जा, वइजोग सुच्चा न असम्भमाह ॥ १८ ॥ उबेहमाणो उ परिव्वइज्जा, पियमप्पियं सव्व तितिक्खड़ज्जा । न सव्य सब्वत्थऽभिरोअइज्जा, न यावि पूर्य गरिहं च संजए ॥ १९ ॥ अणेग छंदा मिह माणवेहिं, जे भावओ से पकरेइ भिक्खू । भयभेरवा तत्थ उति भीमा, दिव्या मणुस्सा | अदुवा तिरिच्छा ||२०|| परीसहा दुब्बिसहा अणेगे, सीयंति जत्था बहुकायरा नरा से तत्थ पत्ते न वहिज पंडिए, संगामसीसे इव नागराया ॥ २१ ॥ सीओसिणा दंसमसगा य फासा, आर्यका विविहा फुसंति देहं । अक्कुक्कुओं तत्थऽहियासइज्जा, रयाई खेविज पुराकडाई ॥ २२ ॥ पहाय रागं च तहेव दोर्स, मोहं च भिक्खू सययं विक्खणे । मेरुव्व वाएण अकंपमाणे, परीसहे आयगुत्ते सहिज्जा ॥ २३ ॥ अणुन्नए नावणए महेसी, न यावि पूयं गरिहं च संजए। से उज्जुभावं परिवज्र संजए, निव्वाणमग्गं विरए उबेइ ॥ २४ ॥ अरहरइसहे पहीणसंथवे, बिरए आयहिए पहाणवं । परमट्टपएहिं चिट्ठई, छिन्नसोए अममे अकिंचणे ॥ २५ ॥ विवित्तलयणाई भहज ताई, निरोवलेवाई असंथडाई । इसीहिं चिन्नाहं महायसेहिं, कारण फासिज परीसहाई ॥ २६ ॥ सण्णाणनाणोवगए महेसी, अणुत्तरं चरियं धम्मसंचयं । अणुत्तरेनाणधरे जसंसी, ओभासई सूरिए वंडत लिक्खे ॥ २७ ॥ त्रयोदश सूत्राणि प्रायः सुगमान्येव, नवरं 'हित्वा' खक्त्वा संवासी प्रन्बश्व सग्रन्थः, प्राकृतत्वाविन्दुलोपस्तं, For Parent निर्युक्तिः [४३५...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित अत्र गाथा क्रम ||११,१२,...|| एव वर्तते, परन्तु मूल संपादने मुद्रण अशुद्धित्वात् क्रमांकने || १५.१६...|| इति मुद्रितं आगमसूत्र [४३] मूलसूत्र [४] "उत्तराध्ययनानि" मूलं एवं शान्तिसूरि- विरचिता वृत्तिः ~968~ jancibrary urg
SR No.004145
Book TitleAagam 43 UTTARAADHYAYANAANI Moolam evam Vruttii
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages1428
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size288 MB
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