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आगम
“उत्तराध्ययनानि”- मूलसूत्र-४ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययनं [२०],
मूलं [-]/गाथा ||१६-३५|| नियुक्ति: [४२२R...]
(४३)
प्रत
न्थीया.
सूत्रांक
॥१६
-३५||
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उत्तराध्य. मंगं च पीडई। इंदासणिसमा घोरा, वेयणा परमदारुणा ॥ २१ ॥ उवडिया मे आयरिया, विजामंतचिगि-1 महानिर्गबृहदृत्तिः Iच्छगा । अबीआ सस्थकुसला, मंतमूलविसारया ॥ २२॥ ते मे तिगिच्छं कुब्वंति, चाउपायं जहाहियं ।
न य मे दुक्खा विमोयंति, एसा मज्झ अणाया ॥ २३ ॥ पिया मे सव्वसारंपि, दिजाहि मम कारणा । ॥४७॥ न य दुक्खा विमोयंति, एसा मज्झ अणाहया ॥२४॥ माया (वि) मे महाराय!, पुत्तसोगदुहद्दिया । न य दुक्खा २०
विमोयंति, एसा मज्झ अणाहया ॥ २५॥ भायरा मे महाराय!, सगा जिट्ठकणिट्ठगा। न य दुक्खा विमोयंति, एसा मज्झ अणाया ॥ २६ ॥ भइणीओ मे महाराय!, सगा जिट्टकणिडगा । न य दुक्खा विमोयंति, एसा मज्म अणाया ॥ २७ ॥ भारिया मे महाराय!, अणुरत्तमणुब्बया । अंसुपुन्नेहिं नयणेहिं, उरं मे परिसिंचई ॥ २८ ॥ अन्नं पाणं च पहाणं च, गंधमल्लविलेवणं । मए नायमनायं वा, सा बाला नोव जई ॥२९॥ ४ खर्णपि मे महाराय!, पासाओवि न फिद्दई । न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्ज्ञ अणाहया ॥ ३०॥ तोऽह | 31 एवमासु, दुक्खमा हु पुणो पुणो । वेयणा अणुहवि जे, संसारमि अणतए ॥ ३१ ॥ सयं च जइ मुंचिज्जा, वेयणा विउखा इओ। खंतो दंतो निरारंभो, पब्वइए अणगारियं ॥ ३२॥ एवं च चिंतइत्ता णं, पासुत्तो मि
४७४। १/नराहिवा! परियत्तीद राईए, वेयणा मे खयं गया ।। ३३ ॥ तओ कल्ले पभायंमि, आउच्छित्ता ण टबंधवे । खंतो दंतो निरारंभो, पब्बईओ अगगारियं ॥ ३४ ॥ तोऽहं नाहो जाओ, अप्पणो अ परस्स य ।।
सब्वेसि चेव भूयाणं, तसाणं धावराण य ।। ३५॥
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दीप अनुक्रम [७२८-७४७]]
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मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४३], मूलसूत्र - [४] "उत्तराध्ययनानि" मूलं एवं शान्तिसूरि-विरचिता वृत्ति:
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