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आगम
“उत्तराध्ययनानि"- मूलसूत्र-४ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययनं [-]
मूलं -1,
नियुक्ति: [१३-१७]
(४३)
अध्ययनम्
प्रत
सत्रांक
उत्तराध्य.४] व्याख्या-निगदसिद्धाः । नवरमाभिरध्ययनविशेषनामान्युक्तानि, एतन्निरुक्त्यादि च नामनिष्पन्ननिक्षेपप्रस्ताव निएवाभिधास्यते ॥ अधिकारानाह॥९॥ पढमे विणओ बीए परिसहा दुल्लहंगया तइए । अहिगारो य चउत्थे होइ पमायप्पमाएत्ति ॥ १८॥
मरणविभत्ती पुण पंचमम्मि विजा चरणं च छटुअज्झयणे ।रसगेहिपरिच्चाओ सत्तमे अमि अलोभे॥१९॥ निक्कंपया य नवमे दसमे अणुसासणोवमा भणिया । इक्कारसमे पूया तवरिद्धी चेव बारसमे॥२०॥ तेरसमे अ नियाणं अनियाणं चेव होइ चउदसमे। भिक्खुगुणा पन्नरसे सोलसमे बंभगुत्तीओ ॥२१॥ पावाण वज्जणा खलु सत्तरसे भोगितिविजहणटारे । एगुणि अप्परिकम्मे अणाहया चेव वीसइमे ॥२२॥ चरिया य विचित्ता इक्कवीसि बावीसिमे थिरं चरणं। तेवीसइमे धम्मो चउवीसइमे य समिइओ॥२३॥ बंभगुण पन्नवीसे सामायारी य होइ छवीसे । सत्तावीसे असढया अट्ठावीसे य मुक्खगई ॥ २४ ॥ एगुणतीस आवस्सगप्पमाओ तवो अहोइ तीसइमे। चरणं च इक्वतीसे बत्तीसिपमायठाणाई ॥२५॥
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दीप अनुक्रम
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मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४३), मूलसूत्र - [४] "उत्तराध्ययनानि" मूलं एवं शान्तिसूरि-विरचिता वृत्ति:
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