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आगम
“उत्तराध्ययनानि”- मूलसूत्र-४ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययनं [३६], मूलं [-]/ गाथा ||२१५-२४३|| नियुक्ति: [५५६...], भाष्यं [१५...]
(४३)
प्रत
उत्तराध्य. बृहद्भुत्तिः ॥७०
सूत्रांक
[२१५
-२४३]]
तु, उकोसेण वियाहियं । वंतराणं जहमेणं, दसवाससहस्सिया ॥ २१८ ॥ पलिओवममेगं तु, या-14जीवाजीव सलक्खेण साहियं । पलिओवमहभागो, जोइसेसु जहनिया ॥ २१९ ॥ दो चेव सागराई, उक्कोसेणं विया
विभकि. हिया । सोहम्मंमि जहन्नेणं, एगं च पलिओवर्म ॥२२०॥ सागरा साहिया दुन्नि, उक्कोसेण वियाहिया। ईसा
मि जहनेणं, साहियं पलिओवमं ।। २११ ।। सागराणि य ससेव, उक्कोसेण ठिई भवे । सर्णकुमारे जहनेणं, दुन्नि ऊ सागरोवमा ॥ २२२ ।। सागरा साहिया सत्त, उक्कोसेण वियाहिया । माहिदमि जहमेणं, साहिया दन्नि सागरा ॥ २२३ ॥ दस चेव सागराई, उक्कोसेण वियाहिया । भलोए जहलेणं, सत्त व सागरोवमा
॥ २२४ ।। चजहस उ सागराइं, उक्कोसेण वियाहिया । लंतगंमि जहनेणं, दस उ सागरोवमा ॥ २२५ ॥ 8 सत्तरस सागराई, उक्कोसेण वियाहिया । महामुक्के जहन्नेणं, चउरस सागरोवमा ॥ २२६ ॥ अट्ठारससागराई, उफोसेण वियाहिया । सहस्सारे जहन्नेण, सत्तरससागरोवमा ॥ २२७ ॥ सागरा अउणवीसं तु, को-18 सेण ठिई भवे । आणयंमि जहन्नेणं, अट्ठारस सागरोवमा ॥२२८॥ वीसंतु सागराइंतु, उक्कोसेण ठिई भवे ।। पाणयंमि जहनेणं, सागरा अउणवीसई ॥२२९ ॥ सागरा इकवीसंतु, उक्कोसेण ठिई भवे । आरणमि
७०३॥ | जहन्नेणं, वीसई सागरोवमा ॥२३०॥ बावीससागराई, उकोसेण ठिई भवे । अयंमि जहनेणं, सागरा|
इक्कवीसई ॥ २३१ ।। तेवीससागराई, उकोसेण ठिई भवे । पढमंमि जहनेणं, बावीसं सागरोवमा ॥ २३२॥ चिउवीससागराई, उकोसेण ठिई भवे । विइयंमि जहनेणं, तेवीसं सागरोवमा ॥ २३३ ॥पणवीससागरा क,
दीप अनुक्रम [१६८०-१७०८]
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मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४३], मूलसूत्र - [४] "उत्तराध्ययनानि" मूलं एवं शान्तिसूरि-विरचिता वृत्ति:
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