________________
आगम
“उत्तराध्ययनानि”- मूलसूत्र-४ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययनं [३६], मूलं [-]/ गाथा ||१४४-१५४|| नियुक्ति : [५५६...], भाष्यं [१५...]
(४३)
वृहद्भुत्तिः
प्रत सूत्रांक [१४४
॥६९६॥
३६
KRICA
१५४]
उत्तराध्या
पचिंदिया उ जे जीवा, चउविहा ते चियाहिया। नेरइय तिरिक्खा य, मणुया देवा य आहिया ॥ १५४ ॥ जीवाजीव दा पथेन्द्रियास्त ये जीवाश्चतुर्षिधास्ते व्याख्याताः, तद्यथा-'णेरइय तिरिक्खा यत्ति नैरयिकास्तियचथ मनुजा
देवाश्च 'आख्याताः' कथितास्तीर्थकरादिभिरिति सूत्रार्थः ॥ तत्र तावन्नैरयिकानाह1* नेराया ससबिहा, पुढवीसू सत्तम् भवे । रयणाभसकराभा, वालुयाभा य आहिया ॥ १५५॥ पंकाभा ।
धूमाभा, तमा तमतमा तहा । इइ नेरइया एए, सत्तहा परिकित्तिया ॥१५६ ॥ लोगस्स एगदेसंमि, तेका सब्वे उ वियाहिया । इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छ चउग्विहं ॥१५७ ॥ संतई पप्पडणाईया, अपजवसियावि य । ठिई पडच साईया, सपनवसियावि य ॥ १५८ ॥ सागरोवममेगं तु, उकोसेण वियाहिया ।
पढमाइ जहन्नेणं, दसवाससहस्सिया ।। १५९॥ तिन्नेव सागराऊ, उकोसेण वियाहिया। दुचाए जहन्नेणं, दाएग तू सागरोवमं ॥१६०॥ सत्तेव सागराऊ, उक्कोसेण विवाहिया । तईयाए जहम्नेणं, तिनेव उ सागरोघमा ॥ ११ ॥ दससागरोवमाऊ, उकोसेण वियाहिया । चउत्थीद जहन्नेणं, सत्तेव उ सागरोवमा ।।१६२॥ सत्तरससागराऊ, उक्कोसेण वियाहिया। पंचमाए जहन्नेणं, दस चेव उ सागरा ॥१६३ ॥ यावीससागराका |उक्कोसेण वियाहिया । छट्ठीद जहन्नेणं, सत्तरस सागरोवमा ॥१४॥ तित्तीससागराऊ, उकोसेण वियाहिया। र सत्तमाए जहन्नेणं, घावीसं सागरोवमा ॥ १३५ ॥ जा चेव उ आउठिई, नेरहयाणं वियाहिया । सा तेसि ||
दीप अनुक्रम [१६०९-१६१९]
॥६९६॥
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४३], मूलसूत्र - [४] "उत्तराध्ययनानि" मूलं एवं शान्तिसूरि-विरचिता वृत्ति:
~ 1390 ~