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आगम
“उत्तराध्ययनानि”- मूलसूत्र-४ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययनं [३४], मूलं [-] / गाथा ||४१-५५|| नियुक्ति: [५४५...]
(४३)
प्रत
सूत्रांक
[४१
-५५]]
पलियमसंखिजइमो उक्कोसो होइ किण्हाए ॥४८॥ जा किण्हाइ ठिई खलु नकोसा सा उ समयमभहिया । जहन्नेणं नीलाए पलियमसंखं च उक्कोसा ।। ४९॥ जा नीलाइ ठिई खलु उक्कोसा सा उ समयमभहिया । जहन्नेणं काऊए पलियमसंखं च उक्कोसा ॥५०॥ तेण परं वुच्छामी तेजलेसा जहा सुरगणाणं । भवणवहवाणमंतरजोइसवेमाणियाणं च ।। ५१ ॥ पलिओवमं जहन्ना उक्कोसा सागरा उ दुपहहिया । पलियमसंखिजेणं होई भागेण तेऊए ॥५२॥ दसवाससहस्साई तेजइ ठिई जहनिया होइ । दुन्नुदही पलिओवमअसंखभागं च उक्कोसा ॥ ५३॥ जा नेऊइ ठिई खलु उकोसा सा उ समयमभहिया। जहन्नेण पम्हाए दस | मुहुत्तहियाई उक्कोसा ॥५४॥ जा पम्हाइ ठिई खलु उक्कोसा सा उ समयमभहिया । जहन्नेणं सुकाए| तित्तीसमुहुत्तमम्भहिया ॥ ५५॥
दशवर्षसहस्राणि कापोतायाः स्थितिर्जघन्यका भवति, त्रय उदधयः 'पलियमसंखेज्जभागं च'त्ति सूत्रत्यात् पल्योपमासङ्खयेयभागं चोत्कृष्टा, पठन्ति च-'उकोसा तिन्नुदही पलियमसंखेजभागऽहिय'त्ति स्पष्टम् , इयं च जघन्या रत्नप्रभायां, तस्यां हि जघन्यतोऽपि दशवर्षसहस्राण्यायुरिति, उत्कृष्टा च वालुकाप्रभायां, तत्राप्युपरितनप्र-11 |स्तटनारकाणामेव, तेषामेतावस्थितिकानामसाविति भावनीयम् । त्रय उदधयः पल्योपमासययभागश्च मकारस्थालाक्षणिकत्वात् चस्य गम्यमानत्वाजघन्या नीलायाः स्थितिर्दशोदधयः पल्योपमासङ्खयेयभागश्चोत्कृष्टा, इहापि
दीप अनुक्रम [१४२३
-१४३७]]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४३), मूलसूत्र - [४] "उत्तराध्ययनानि" मूलं एवं शान्तिसूरि-विरचिता वृत्ति:
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