________________
आगम
“उत्तराध्ययनानि”- मूलसूत्र-४ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययनं [३१], मूलं [-] / गाथा ||२-२०|| नियुक्ति: [५१८...]
(४३)
प्रत सूत्रांक [२-२०]
25
उत्तराध्य.
सुखावहमेव शुभावहमेव वा, यथा चैतदेवं तथा फलोपदर्शनद्वारेणाह-यं 'चरित्वा' आसेव्य वहयो जीवाः 'तीर्णा' चरणवि
अतिकान्ताः 'संसारसागरं' भवसमुद्र मुक्तिमवाप्सा इत्यभिप्राय इति सूत्राथें ॥ बृहद्वृत्तिः ॥११॥
एगओ विरई कुज्जा, एगओ अपवत्तणं । अस्संजमे नियत्तिं च, संजमे य पवत्तणं ॥२॥ रागद्दोसे य दो पाचे, पावकम्मपवत्तणे । जे भिक्खू संभई निचं, से न अच्छह मंडले ॥३॥ दंडाणं गारवाणं च, सल्लाणं च तियं । तियं । जे भिक्खू चयई निचं, से न अच्छा मंडले ॥४॥ दिब्वे यजे उबस्सग्गे, तहा तेरिच्छमाणुसे। ||जे भिक्खू सहई निचं, से न अच्छा मंडले ॥५॥ विगहाकसायसन्नाणं, झाणार्ण च दुर्य तहा । जे भिक्खू/
वजई निर्च, से न अच्छा मंडले ॥६॥बएस इंदियत्येसु, समिईसु किरियासु य । जे भिक्खू जयई निचं, | से न अच्छह मंडले ॥७॥ लेसासु छसु काएस, छक्के आहारकारणे । जे भिक्खू जय निचं, से न अच्छा | मंडले ॥८॥ पिंडग्गहपडिमासु, भयवाणेसु सत्तसु । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छा मंडले ॥९॥ मएसुबभगुत्तीसु, भिक्खुधम्ममि दसविहे जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छद मंडले ॥१०॥ उवास
गाणं पडिमासु, भिक्खूणं पडिमासु य । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छद मंडले ॥११॥ किरियामु| nam दाभूयगामेसु, परमाहम्मिएसु य । जे भिक्खु जई निचं. सेन अच्छह मंडले ॥ २२ ॥ गाहासोलसएहि, तहा|
अस्संजमंमि अ । जे भिक्खू जयई निचं, सेन अच्छद मंडले ॥१॥ भमि नायज्झयणेसु, ठाणेसु यऽसमा
55कर
दीप अनुक्रम [१२२७-१२४५]
JABERatinintamational
wwjandiarary on
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४३), मूलसूत्र - [४] "उत्तराध्ययनानि" मूलं एवं शान्तिसूरि-विरचिता वृत्ति:
~1220~