SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 539
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम “दशवैकालिक”- मूलसूत्र-३ (मूलं+नियुक्ति:+|भाष्य|+वृत्ति:) अध्ययनं [१०], उद्देशक [-], मूलं [४...] / गाथा ||१६-२१|| नियुक्ति: [३५८...], भाष्यं [६२...] (४२) CATEGAR प्रत सूत्रांक SC ||१६-२१|| द सुसमाहितात्मा ध्यानापादकगुणेषु, तथा सूत्रार्थं च यथावस्थितं विधिग्रहणशुद्धं विजानाति यः सम्यग्यथाविषयं स भिक्षुरिति सूत्रार्थः ॥१५॥ उबहिमि अमुच्छिए अगिद्धे, अन्नायउंछं पुलनिप्पुलाए । कयविक्कयसंनिहिओ विरए, सव्वसंगावगए अ जे स भिक्खू ॥ १६ ॥ अलोल भिक्खू न रसेसु गिज्झे, उंछं चरे जीविअ नाभिकंखे । इडिं च सकारणपूअणं च, चए ठिअप्पा अणिहे जे स भिक्खू ॥ १७ ॥ न परं वइजासि अयं कुसीले, जेणं च कुप्पिज न तं वइज्जा । जाणिअ पत्तेअं पुण्णपावं, अत्ताणं न समुक्कसे जे स भिक्खू ॥ १८॥ न जाइमत्ते न य रूवमत्ते, न लाभमत्ते न सुएण मत्ते । मयाणि सव्वाणि विवजइत्ता, धम्मज्झाणरए जे स भिक्खू ॥ १९॥ पवेअए अजपयं महामुणी, धम्मे ठिओ ठावयई परं पि । निक्खम्म वजिज कुसीललिंगं, न आवि हासंकुहए जे स भिक्खू ॥ २० ॥ तं देहवासं असुई असासयं, सया चए निच्चहिअद्विअप्पा । छिंदित्तु जाईमरणस्स D दीप अनुक्रम [५००-५०५] SC0% मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[४२], मूल सूत्र-[३] “दशवैकालिक” मूलं एवं हरिभद्रसूरि-विरचिता वृत्ति: ~ 538~
SR No.004144
Book TitleAagam 42 DASHVAIKAALIK Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages577
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size134 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy