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________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [सू.] दीप अनुक्रम [६२..] आवश्यकहारिभ द्रीया ॥८०७॥ आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (मूलं+निर्युक्ति:+वृत्ति:) अध्ययनं [६], मूलं [-] / [गाथा-], निर्युक्तिः [ १५६१...] भाष्यं [ २४२...], सयं ॥ ६ ॥ अहवा अणुब्वए चैव पहुच एकगादिसंजगदुवारेण पभूयतरा भेदा निदंसिज्यंति, तत्रेयमेकादिसंयोगपरिमाणप्रदर्शनपराऽन्यकर्तृकी गाथा | पंचमणुवाणं इकगदुगतिगचपणएहिं । पंचगदसदसपणइक्कगे य्र संजोग कायव्वा ॥ १ ॥ ear aai - पंचमणुवयाणं पुवभणियाणं 'एकग दुगतिगचक्कपणएहिं चिंतिजमाणाणं 'पंचगद्सदसपणगएकगो य संजोग णातवा' एक्केण चिंतिजमाणाणं पंच संजोगा, कहं?, पंचसु घरएस एगेण पंचैव भवन्ति, दुगेण चिंतिजमाणाणं दस चेव, कहूं ?, पढमबीयधरेण एको १ पढमततियघरेण २ पदमच उत्थघरेण ३ पढमपंचमघरेण ४ वितियततियघरेण ५ बीयचउत्थघरेण ६ बीयपंचमधरेण ससमो ७ ततियचडत्थघरेण ८ ततियपंचमघरेण ९ चउत्थपंचमघरेण १० ॥ तिगेण चिंतिज्जमाणाणं दस चेव, कहं १, पढमवियततियघरेण एक्को १ पढमवितियच उत्थघरेण २ पढमवितियपंचमघरेण | ३ पढमतईयचडत्थघरेण ४ पढमततियपंचमघरेण ५ पढमच उत्थपंचमघरेण ६ वितियततियच उत्थघरएण ७ वितियततिय| पंचमघरेण ८ वितिय चउत्थपंचमघरेण ९ ततियच उत्थपंचमधरेण १० । उगेण चिंतिज्जमाणाणं पंच हवंति, कहं ?, पढमबि| तियततियचउत्थघरेण एक्को पढमवितियततियपंचमघरेण २ पदमवितियचउत्थपंचमघरेण ३ पढमततियच उत्थपंचमधरेण १४ वितियततियच उत्थपंचमघरेण ५, पंचगेण चिंतिजमाणाण एगो चैव भवतित्तिगाथार्थः ॥ १ ॥ एत्थ य एकगेण य जे पंच संजोगा दुगेण जे दस इत्यादि, एएसिं चारणीयापओगेण आगयफलगाहाओ तिणिarriaोगाण हुंति पंचण्ह तीसई भंगा। दुगसंजोगाण दसह तिन्नि सट्टा सया हुंति ॥ १ ॥ For at Use Only ६प्रत्याख्या नाध्य० श्रावकत्रतभङ्गाः ~ 1616~ ||८०७ || Typ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" मूलं एवं हरिभद्रसूरि-रचित वृत्तिः
SR No.004141
Book TitleAagam 40 AAVASHYAK Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages1736
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size374 MB
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