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________________ आगम आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययन [४], मूलं [सू.] / [गाथा-], नियुक्ति: [१३७६] भाष्यं [२२३...], (४०) दीया प्रत सूत्रांक [सू.] आवश्यक- कालबेलं तुलति, अहवा तिसु उत्तरादियासु संझाए गिण्हंति 'चरिमति अवराए अवगयसंझाएवि गेहति तहावि न प्रतिक्रहारिभ18|दोसोत्ति गाथार्थः ॥ १३७६ ॥ सो कालग्गाही बेलं तुलेत्ता कालभूमीओ संदिसावणनिमित्तं गुरुपायमूलं गच्छति । मणाध्य० सातत्थेमा विही अस्वाध्या७४८॥ आउत्तपुथ्वभणियं अणपुच्छा खलियपडियवाघाओ।भासत मूढसंकिय इंदियविसए तु अमणुण्णे ॥ १३७७ ॥ व्याख्या-जहा निग्गच्छमाणो आउत्तो निम्गतो तहा पविसंतोषि आउत्तो पविसति, पुषनिग्गओ पेव जइ अणा-II को कालपुच्छाए कालं गेहति, पविसंतोवि जइ खलइ पडइ जम्हा एत्थवि कालुद उग्धाओ, अहवा घाउत्ति लेहुईगालादिणा। 'भासत मूढसंकिय इंदियविसए अमणुण्णे इत्यादि पच्छद्धं सांग्यासिकमुपरि वस्यमाणं । अहवा इत्थवि इमो अत्यो| भाणियबो-चंदणं देतो असं भासंतो देह वंदणदुर्ग उवओगेण उ न ददाति किरियासु वा मूढो आवत्तादीसु वा संका कया न कयत्ति बंदर्ण देतस्स इंदियविसओ वा अमणुण्णमागओ ।। १३७७ ॥ ग्रहविधिः दीप अनुक्रम [२९] कालवेला तोकयता, अधोतराषिषु लिम सम्पयायो गृहन्ति चरमामिति अपरस्यामपगतसम्व्यायामपि गृहन्ति, तथापि न दोष हति । स काल-II मादी वेला तोमयित्वाकालभूमिमंदिशनानिमित्तं गुरुपादमूले गच्छति, तत्रायं विधिः यथा निर्गमायुक्तो निर्गतसपा प्रविशपि भायुक्तः प्रविशति, पूर्वनिर्गत एव पचनाप का पहाति प्रविपि परिस्खलति पतति बनावनापि काळ इवोधाता, अपना धात इति नारादिना, भाषमाणेखावि, मवानाप्वयमों भणितम्या-बदन पर भन्यत् भाषमाणो वाति बम्नलिकापयोगेन नदाति किवासु वा सूर धावतांविषमा मताभ कृता वेति | वन्यनं वषतोऽमनोशो देवियविषण भागतः ~1499~
SR No.004141
Book TitleAagam 40 AAVASHYAK Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages1736
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size374 MB
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