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आगम
आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययन [४], मूलं [सू.] / [गाथा-], नियुक्ति: [१२७३...] भाष्यं [२०६...],
(४०)
आवश्यकहारिभद्रीया
प्रत सूत्रांक [सू.]
॥६६२॥
नानि
पसिद्धे 'विसई' निंदइ जचाईहिं, अबहुस्सुया वा एए तहावि अम्हेवि एएसिं तु सगासे किंपि कहंचि अवहारियति 'मंदबुद्धीए' प्रतिक्रमबालेत्तिभणिय होइ १०, तेसिमेव'य आयरिओवज्झायाणं परमबंधूणं परमोचगारीण णाणीण'न्ति गुणोवलक्षणं गुणेहिं पभा- णाध्यक विए पुणो तेसिव कजे समुपपणे 'समैन पडितप्पई' आहारोवगरणाईहिं णोवजुजेइ ११, 'पुणो पुणो त्ति असई 'अहिगरण' त्रिंशन्मोहजो तिस्साइ 'उप्पाए' कहेइ निवजत्ताइ 'तित्थभेयए' गाणाइमग्गविराहणत्यति भणिय होइ १२, जाणं आहमिए जोए-वसी- नीयस्थाकरणाइलक्खणे पउंजइ 'पुणो पुणों' असइत्ति१३, कामें इच्छामयणभेयभिण्णे 'वमेत्ता' चइऊण, पषजमन्भुवगम्म 'पत्थे | अभिलसइ इहभविए-माणुस्से चेव अण्णभविए-दिवे १४, 'अभिक्खणं' पुणो २ बहुस्सुएऽहंति जो भासए, बहुस्सुए। (बहुस्सुएण) अण्णेण वा पुट्ठोस तुम बहुस्सुओ?,आमंति भणइ तुहिको वा अच्छइ, साहवो चेव बहुस्सुएत्ति भणति १५ अतवस्सी तवस्सित्ति विभासा १६, 'जायतेएण' अग्गिणा बहुजणं घरे छोढुं 'अंतो धूमेण' अभितरे धूमं काऊण हिंसइ १७, 'अकिञ्च' पाणाइवायाइ अप्पणा कार्ड कयमेएण भासइ-अण्णस्स उत्योभं देइ १८,'नियडुवहिपणिहीए पलिउंचई' नियडीअण्णहाकरणलक्खणा माया उवहीतं करेइ जेण तं पच्छाइजइ अण्णहाकयं पणिही एवंभूत एव (च) रइ, अनेन प्रकारेण| 'पलिउंचई' बंचेइत्ति भणिय होइ १९, साइजोगजुत्ते य-अशुभमनोयोगयुक्तश्च २०, बेति' भणइ सब मुसं बयइ सभाए २१॥
६२॥ 'अक्खीणझंझए सया' अक्षीणकलह इत्यर्थः, झंझा-कलहो २२, 'अद्धाणमि' पंथे 'पवेसेत्ता' नेऊण विसंभेण जो धर्ण-1 सुवण्णाई हरर पाणिण-अछिदइ २३, जीवाणं, विसंभेत्ता-उवाएण केणइ अतुल पीई काऊण पुणो दारे-कलते |'तरसेव' जेण समं पीई कया तत्थ लुभइ २४, 'अभिक्खण' पुणो २ अकुमारे संते कुमारेऽहंति भासइ २५, एवमब-13
दीप अनुक्रम [२६]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] “आवश्यक" मूलं एवं हरिभद्रसूरि-रचित वृत्ति:
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