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________________ आगम (३६) प्रत सूत्रांक [२] दीप अनुक्रम [१६१] अत्र उद्देशकः ८ आरब्धः "व्यवहार" - उद्देश: (७) मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......... छेदसूत्र - ३ ( मूलं ) मूलं [२] ... आगमसूत्र - [३६], छेदसूत्र [३] "व्यवहार" मूलं - किमाता जाव उवडावेत या संजिताए वा संवसिनए या वीसे इसरियं दिसं वा अमुदिसं या उदिसितए वा धारितए वा २ जे नियन्याय निम्न्धीजय समोइया सिया कप्प निम्न्या निम्मी व आपुच्छिता निम्न्धी अपनाओ आगयं सुपाया जाय तस्स ठाणस्स जालोयाचिता पढिकमायेत्ता जाय उक्ावित्ताए या संमुत्तिएका संच तीसे इत्तरियं धारेतर या तं च निम्न्धीओ इच्छेला यमेन नियंठा जान उदात्त वा संजिताए या संवसिताए या तीसे इसरियं दिसं या अणुदिसं या उदिसित्ताए वा धारेत वा '४४ । ३ । जे निगन्धाय निगन्धीओ य संभोइया लिया, नो व्हे कप्पड़ पारोक्लं पाहिएकं संमोहवं विसंभोग करेलाए, कप्प हुं पाडिएक संभो संभोग करे व अमन्नं पासे तत्व एवं 'तुमाए सद्धि इमम्मिय २ कारणम्पिक्स पाहिएक संभोग चिसंभोग करेमि से व पति एवं से जो कप्प पचलं पाहिएकं संमोहयं विसंभोग करेनए से नोपविला एवं से कप्पर पचास पाढिएवं संभोइयं विभोग करेत्तए ८६।४। जाओ निम्बन्धीओ वा माया संभोइया सिया नो व्हें कप्पड़ निम्बन्धि पचलं पाहिएक संमोहयं विसंभोग करेला, कप्प पारोप पाढिएकं संभोदयं विसंभोग करेल, जनताओ अपनी पासे सत्येव एवं एना 'अहं ते अमुगीए जाए सद्धिं इमम्मि कारणम्मि पारोक्लं पाठिएक संभोग विसंभोग करेमि सा वसे पडितजा एवं से नो कप्पड़ पारो पाटिएकं संभोइयं विसंभोग करेला, साय से जो पति एवं से कप्पड़ पारोक्वं पाडिएकं संमोह विसंभोग करेल ९४५ नो कप्पइ निमार्ण निम्न अाए पडावेत या मुण्डावेत्ता वा सिक्खानित्तए वा सहावेतए वा उपद्वावेन वा संभुजिताए या संवलिलाए या तीसे इसरियं दिसं या अणुदितं वा उदिखित्तए वाचा वा ६ कप्प निम्मन्यार्ण निग्मन्धि अति अट्टाए पडावेत्तए वा धारेतए वा ११८ । ७ नो कप निधी निमगन्धि अपनो अडाए पहावेत या मुंडा वा पारिवा८प्प निम्बीणं निम्मंचि बढाए पचास वा जाय पारिए वा ९। नो कम्पनी विडिय दिसं या अनुदिसं या उरित्तिए वा धारेलए वा १० ०१४४|११ नोकपनि चिकाई पाहुटाई दिए १२ कम्पनि विफाई पाडाई विओतए १७९१३ नो कप निर्मा चावा निर्माण वा चिकिद्वयं कालं सज्झायं उदिसिनाए या करेल या १४ कप निर्माण किए काले सजाय करेल नियनिस्साए २६४ । १५ नो कम्पनि निवास सझा करेस १६ कप्प निर्माण वा नियीण या सझाइए सझाय करेल १७ नो कम्पनिया निर्माण वा अप्पणी असझाइए सार्य करेल. कप्प हे अन्नमन्नरस वा ददत्तए ४०३ १८। निवासपरियाए समये निर्माचे तास परियायाए समणीए निधी कम्प उवज्झायत्ताए उदितिए १९। पञ्चनासपरिपाए समये निर्माचे सहवासपरियायाए समणीए निमबीए कम्प परियार उदितिए ४१६२० मा जमाने निषसू अपी मेजा से सरीर के साथ पासेज, कप्प से से सरीर मा सामारिमिसिरी ए अभिहुए पंडिले पडियम परिसर, अस्थिया मिलिए उपगराए परिहरणारि कप्प से सामारकडे गहाय दोपि जग्गा अन्नवेत्ता परिहार परिहरेत्लए '४७२ २१ सारिए उसका से ब इदमन्हि व जोनासे समणा निम्गन्धा परिवर्तति से सामारिए परिहारिए से वनोपजाएगा. इस ममय ओमासे समणा निम्नन्धा परिवसन्तु से सागारिए परिहारिए, दोष से अति २ ओबासे समया निम्मन्या परिवलन्तु दोष से सामारिया परिहारिया २२ सामारिए उवस्त्रयं विकणेला से य कइयं इयमय वासे समणा निम्म्या परिवसन्ति से सामारिए पारिहारिए से य नो एवं जयंति वा समया निम्मा परिवस से सामारिए पारिहारिए से पा अति २ जनासेसमा निम्मा परिन् दोषि सामारिया परिहारिया ॥२३॥ हिया नायकुलवासिनी सावधानि ओहं अनुया मिया माया वा पुणे या से य दोषि ओई ओहिया । २४ पहिए जो अनय ५१७ [२५] से रम (राय) परिस परपरिहिए अाम्हाला चिट्टा २६ से परिपरप रिहिए सुभास अाए दो जो अनयत्रेसिया ५४५ ॥ २७॥ सन ७॥उस ताए गए एएए ताए उपासन्तराष्ट्र जमावार भेजा तमि ममेन सिया, मेरा प से अजामे तसे लिया पेरा से नोएवं से कपड़ आहारथिया थार पहिया १] से सजायारा पक्रिया एवं त्वं गयि जाएगा या सुधा वानिया या परिलिए एस मे मन्नन्हा महि 123] से हाल चार चकिया मे इत्येवं जग जाय एगाई या दुयाई वा नियाई वा उधाणं परिवहिलाए एस मे बासना भविस्स (२४४) ९०६ व्यवहार देखो मुनि दीपरतसागर ~ 11~
SR No.004136
Book TitleAagam 36 VYAVAHAAR Moolam evam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages17
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size5 MB
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