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आगम
(१८)
“जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति” - उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्तिः ) वक्षस्कार [७], -----
---- मूलं [१५०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१८], उपांग सूत्र - [७] "जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति मूलं एवं शान्तिचन्द्र विहित वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
[१५०]
दीप
श्रीजम्बु-18/२ दाहिणेणं जाव राई भवइ, जया णं भन्ते! जम्बुद्दीवे दीवे दाहिणद्धे अट्ठारसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ तया णं वक्षस्क
द्वीपशा-18| उत्त० अट्ठारसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ जया णं उत्तरद्धे अट्ठार. भवर तया णं जम्बुद्दीवे २ मंदर० पुरथिमेणं || मर्यादेरीन्तिचन्द्री-18सातिरेगा दुवालसमुहत्ता राई भवइ, हता! गोअमा! जया णं जम्बुद्दीवे २ जाव राई भवइ, जया णं भंते ! जम्बु- शान्यादाया वृत्तिः दीवे २ मंदरस्त पुरस्थिमेणं अहारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ तयाणं पञ्चस्थि०, जया णं पञ्चत्थिमेणं तया णं | बुद्गमादिः १८ जम्बुद्दीवे दीवे मंदरस्स० उत्तरदाहिणेणं साइरेगा दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, एवं एतेणं कमेणं ऊसारेअर्व, सत्तरस-1
सू.१५० मुहत्ते दिवसे तेरसमुहुत्ता राई सत्तरसमुहुत्ताणतरे दिवसे सातिरेगतेरसमुहुत्ता राई सोलसमुहुत्ते दिवसे चोद्दसमुहुत्ता ! राई सोलसमुहुत्ताणंतरे दिवसे सातिरेगा चोद्दसमुहुत्ता राई पण्णरसमुहुत्ते दिवसे पण्णरसमुहुप्ता राई पण्णरसमुहुत्ताणतरे दिवसे साइरेगपण्णरसमुहुत्ता राई चोद्दसमुहुत्ते दिवसे सोलसमुहुत्ता राई चोद्दसमुहुत्ताणतरे दिवसे सातिरे
गसोलसमुहत्ता राई भवद तेरसमुहुत्ते दिवसे सत्तरसमुहुत्ता राई तेरसमुहुत्ताणतरे दिवसे सातिरेगसत्तरसमुहुत्ता राई, ॥जया णं भंते! जम्बुद्दीवे दीवे दाहिणद्धे जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं उत्सरद्धेवि, जया णं उत्तरद्धे
तया णं जम्बुद्दीवे दीवे मंदरस्स पुरथिमपञ्चत्थिमेणं उक्कोसिआ अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ !, हता! गोअमा! एवं चेव उच्चारअर्व जाव राई भवइ, जया णं भंते ! जम्बुद्दीवे २ मंदरपुरस्थिमेणं जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ
॥४८॥ तया णं पञ्चत्थिमेणवि. जया णं पञ्चत्थिमेणवि. तया णं जम्बुद्दीवे दीवे मंदरस्स उत्तरदाहिणेणं उक्कोसिआ अडा
अनुक्रम [२७७]]
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