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आगम
(१८)
"जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्ति:) वक्षस्कार [७], -----
---- मूलं [१४९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [१८], उपांग सूत्र - [७] "जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति मूलं एवं शान्तिचन्द्र विहित वृत्ति:
श्रीजम्बू द्वीपशा
वक्षस्कारे
प्रत
नक्षत्रमAण्डलादि
र.१४९
न्तिचन्द्रीया वृचिः ॥७४||
सूत्रांक
600cccccc
[१४९]
दीप
क्खेवणं पण्णते, सम्बवाहिरए भते। णक्खत्तमंडले केवइ आयामविक्खंभेणं केवहा परिक्षेवणं पण्णते?, गोभमा ! एगं जोमणसयसहस्सं छच्च सढे जोअणसए आयामविक्खंभेणं तिणि अ जोअणसयसहस्साई अट्ठारस य सहस्साई तिणि अ पण्णरसुत्तरे जोअणसए परिक्खेवणं, जया ण भंते! णक्खत्वे सबभंतरमंडलं स्वसंकमित्ता चार घरइ तथा गं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइ खेत्तं गच्छद ?, गोभमा! पंच जोअणसहस्साई दोषण य पणढे जोअणसए अट्ठारस य भागसहस्से दोणि अ तेवढे भागसए गच्छद मंडलं एकवीसाए भागसहस्सेहिं णवहि अ सडेहिं सपहिं छेचा । जया जे भंते ! णक्खसे सम्बबाहिर मंडलं अवसंकमित्ता चारं घरइ तया गं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइ खेत्तं गच्छइ, गोयमा! पंच जोअणसहस्साई तिणि अ एगूणवीसे जोअणसए सोलस य भागसहस्सेहिं तिष्णि अ पण्डे भागसए गच्छइ, मंडलं एगवीसाए भागसहस्सेहिं णवहि अ सहेहिं सपहि छेत्ता, एते णं भंते! अट्ठ णक्खत्तमंडला कतिहिं चंदमंडलेहिं समोअरंति !, गोभमा ! अहिं चंदमंडलेहि समोअरंति, तंजहापढमे चंदमंडले ततिए छहे सत्तमे अठुमे दसमे इकारसमे पण्णरसमे चंदमंडले, एगमेगेणं भन्ते! मुहुत्तेणं केवहभाई भागसयाई गच्छद?, गो. जं जं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरद तस्स २ मंडलपरिक्खेवस्स सत्तरस अट्ठे भागसए गच्छइ, मंडलं सयसहस्सेणं अट्ठाणडइए अ सएहि छेत्ता इति । एगमेगेणं भन्ते! मुहुत्तेणं सूरिए केवइआई भागसवाई गच्छद, गोभमा ! जं जं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तस्स २ मंडलपरिक्खेवस्स अट्ठारसतीसे भागसए गच्छद, मंडलं सयसहस्सेहिं अठ्ठाणउतीए अ सहि छेत्ता, एगमेगेण भंते ! मुहुतेणं णक्खत्ते केवइआई भागसयाई गच्छइ!, गो०! जं जं मंडलं नवसंकमित्ता चार चरह तस्स तस्स मंडलपरिक्खेवस्स अट्ठारस पणतीसे भागसए गच्छह मंडलं सयसहस्सेणं अट्ठाणचईए अ सएहिं छेत्ता । (सूत्र १४९)
अनुक्रम [२७६]
IS४७४॥
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