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________________ आगम (१८) “जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति” - उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्तिः ) वक्षस्कार [४], ----- मूलं [८५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१८], उपांग सूत्र - [७] "जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति" मूलं एवं शान्तिचन्द्र विहित वृत्ति: श्रीजम्बू ४वक्षस्कारे 18 महाविदेह 18 वर्णन प्रत सूत्रांक [८५] द्वीपशान्तिचन्द्री-18 या चिः ॥३१०॥ aaeeeeeeeeeagasa9000000000 दीप वासे पणते. पाईणपढीणायए उदीणदाहिणविच्छिण्णे पलिअंकसठाणसंठिए दुहा लवणसमुरं पुढे पुरथिम जाब पुढे पचत्थिमिलाए कोडीए पथस्थिमिळ जाव पुढे तित्तीसं जोअणसहस्साई छच्च चुलसीए जोभणसए बचारि अ एगूणवीसहभाए जोअणस्स चिक्खम्भेणति, तस्स बाहा पुरथिमपञ्चस्थिमेणं तेत्तीसं जोअणसहस्साई सत्त य सत्तसट्टे जोअणसए सत्त य एगूणवीसहभाए जोअणस्स आयामेणंति, तरस जीवा बहुमझदेसभाए पाईणपडीणायया दुहा लवणसमुई पुट्ठा पुरथिमिलाए फोडीए पुरथिमिल जाव पुट्ठा एवं परथिमिलाए जाव पुढा, एग जोयणसयसहस्सं आयामेणंति, तस्स पणुं उभभो पासिं उत्तरदाधिणेणं पगं जोयपसयसहस्सं अट्ठावणं जोअगसहस्साई एगं च तेरसुत्तरं जोअणसवं सोलस य एगूणवीसहभागे जोयणस्स किंचिविसेसाहिए परिक्खेवणंति, महाविदेहे थे वासे चउबिहे चउप्पडोआरे पण्णते, तंजहा-पुथविदेहे १ अवरविदेहे २ देवकुरा ३ उत्तरकुरा ४, महाविदेहस्स णं भन्ते ! बासस्स केरिसए आगारभावपढोआरे पण्णत्ते ?, गोमा ! बहुसमरमणिजे भूमिभागे पण्णत्ते जाव कित्तिमेहि चेव अकित्तिमेहिं चेव । महाविदेहे णं भन्ते ! वासे मणुआणं केरिसए आयारभावपडोआरे पण्णत्ते , तेसि णं मणुआणं छबिहे संघयणे छबिहे संठाणे पञ्चधणुसयाई उद्धं उच्चत्तेणं जपणेणं अंतोमुहुर्त उकोसेणं पुल्चकोडीआज पालेन्ति पालेता अप्पेगइआ णिरयगामी जाव अप्पेगइआ सिप्रति जाव अंतं करेन्ति । से केण्डेणं भन्ते! एवं बुच्चइ-महाविदेहे वासे २१, गोअमा! महाविदेदे णं वासे भरहेरवयमषयहरण्णवयहरिवासरम्मगवासेहियो आयामविक्खम्भसंठाणपरिणाहणं विच्छिण्णतराए चेव विपुलतराए चेव महंततराए थेष सुप्पमाणतराए चेव महाविदेहा य इत्य मणूसा परिवसंति, महाविदेहे अ इत्थ देवे अनुक्रम [१४०] Hel ~623~
SR No.004118
Book TitleAagam 18 JAMBUDWIP PRAGYPTI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1097
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size264 MB
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