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आगम
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“जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति” - उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्ति:) वक्षस्कार [३], ---------
--------- मूलं [६६] + गाथा: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१८], उपांग सूत्र - [७] "जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति" मूलं एवं शान्तिचन्द्र विहित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [६६]
गाथा:
आवरणाणं च पहरणाणं च । सव्वा य जुद्धणीई माणवगे दंडणी मागविही गाडगविही कम्बस्स य पबिहस्स अप्पत्ती। संखे महाणिहिंमी तुभिंगाणं च सव्वेसि ॥ ९॥ चक्कट्ठपहाणा अहस्सेहा व णव य विखंभा । बारसदीहा मंजूससंठिआ जण्हवीइ मुहे ॥१०॥ वेरुलिभमणिकवाडा कणगमया विविहरयणपडिपुण्णा । ससिसूरचकाळपखण अणुसमवयणोववत्ती या ॥ ११॥ पलिओचमहिई णिहिसरिणामा य तत्व खलु देवा । जेसि ते आवासा अविना आदिवचा य ।। १२॥ एए णव णिहिरयणा पभूयधणरथणसंचयसमिद्धा । जे वसमुपगच्छंति भरहाविवचकवट्टीणं ॥ १३ ॥ वए णं से भरदे राया अहमभरसि परिणममाणसि पोसहसालाओ पविणिक्खमइ, एवं मजणघरपवेसो जाव सेणिपसेणिसावणया जाव णिहिरयणाणं अट्ठाहि महामहिमं करेइ, तए णं से भरहे राया णिहिरयणाणं अट्ठाहिआए महामहिमाए णिब्वत्ताप समाणीए सुसेणं सेणावहरयणं सदावेश २ चा एवं क्यासी-गच्छण्णं भो देवाणुप्पिा ! गंगामहाणईए पुरथिमिलं णिक्खुढं दुचंपि सगंगासागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खुढाणि अ ओअवेहि २ चा एनमाणत्ति पञ्चप्पिणाहित्ति । तए णं से सुसेणे तं व पुववणिों भाणिअव्वं जाव ओअवित्ता तमाणत्ति पञ्चप्पिणइ पडिविसज्जेइ जाव भोगभोगाई मुंजमाणे विहरदातए णं से दिव्वे पकरयणे अन्नया कयाइ 'आउहघरसालाओ पद्धिणिक्खमइ २ चा अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपरिखुड़े दिन्वतुढिल जाव आपूरेते चेव विजयक्खंधावारणिवेसं मझमजोणं णिग्गच्छद दाहिणपञ्चस्थिमं दिसि विगीअं रायहाणि अभिमुहे पयाए आदि होत्या । तए णं से भरहे राया जाव पासइ २त्ता हतुट्ठ जाव कोढुंबिअपुरिसे सदावेद २ चा एवं वयासी-सिप्पामेव भो देवाणप्पिा ! आमिस जाब पञ्चप्पिणंति ( सूत्र ६६)
दीप अनुक्रम [१०५-१२०]
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