________________
आगम
(१८)
“जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्ति:) वक्षस्कार [३], ---------
--------- मूलं [४३] + गाथा: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१८], उपांग सूत्र - [७] "जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति' मूलं एवं शान्तिचन्द्र विहित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक
[४३]
गाथा:
ecoccedeoesseseseoecenese
आलोए चक्करयणस्स पणामं करेइ २ त्ता जेणेव चक्करयणे तेणेव उवागच्छइर ता लोमहत्वयं परामुसइर त्ता चकरयणं पमजइ २ त्ता दिवाए उद्गधाराए अभुक्खेइ २ ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं अणुलिपइ २ ता अग्गेहिं वरेहिं गंधेहिं मल्लेहि अ अक्षिणइ पुष्फारुहर्ण मल्लगंधवण्णचुण्णवत्थारुहणं आभरणारुहर्ण करेइ २ चा अच्छेदि सहेहि सेएहिं रययामएहिं अच्छरसातंडुलेहि चक्करयणस्स पुरओ अमंगलए आलिहह तं०-सोस्थिय सिरिवच्छ णंदिआवत्त वद्धमाणग भद्दासण मच्छ कलस दप्पण अट्ठमंगलए आलिहित्ता काऊणं करेइ उवयारंति, किं ते !, पाडलमल्लिअचंपगअसोगपुण्णागचूअमंजरिणवमालिअबकुलतिलगकणवीरकुंदकोजयकोरंटयपत्तदमणयवरसुरहिसुगंधगंधिअस्स कयग्गगहिअकरयलपन्भट्ठविप्पमुचास्स दसवण्णस्स कुसुमणिगरस्स तत्य चित्तं जाणुस्सेहप्पमाणमित्तं ओहिनिगरं करेत्ता चंदप्पभवइरवेरुलिअविमलदंडं कंचणमणिरयणभत्तिचित्तं कालागुरुपवरकुंदुरुकतुरुकधूवगंधुत्तमाणुविद्धं च धूमवहि विणिम्मुअंतं वेरुलिअमयं कडुच्छुभं पग्गहेत्तु पयतें धूर्व वहइ २ ता सत्तट्ठपयाई मशोसकाइ २ त्ता वामं जाणुं अंचेइ जाव पणामं करेइ २ चा आउघरसालाओ पडिणिक्खमइ २ मित्ता जेणेव बाहिरिआ उवट्ठाणसाला जेणेब सीहासणे तेणेव उवागच्छइ २ ता सीहासणवरगए पुरत्याभिमुहे सष्णिसीअइ २ चा अट्ठारस सेणिपसेणीओ सद्दावेइ २ ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिआ! उस्मुकं उकरं उकिटं अदिजं अमिजं अभडप्पबेस अदंडकोदंटिम अधरिमं गणिआवरणाडइबकलिअं अणेगतालावराणुचरिअं अणु अमुइंगं अमिलायमझदाम पमुइअपकीलिअसपुरजणजाणवयं विजयकेजइ चकरयणस्स अट्टाहिअं महामहिमं करेह २ ता ममेअमाणत्ति खिप्पामेव पञ्चप्पिणह, तए णं वाओ अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ भरहेणं रन्ना एवं वुत्ताओ
दीप अनुक्रम [५६-६०]
ease
~374~