________________
आगम
(१८)
प्रत
सूत्रांक
[२३-२४]
दीप
अनुक्रम
[३६-३७]
श्रीजम्बूद्वीपचान्तिचन्द्री - या वृत्तिः
॥१२०॥
"जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति उपांगसूत्र - ७ (मूलं + वृत्तिः)
वक्षस्कार [२],
मूलं [२३-२४]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ... ....आगमसूत्र [१८], उपांग सूत्र [७] "जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति मूलं एवं शान्तिचन्द्र विहित वृत्तिः
Genet
-
णं भंते! भरहे वासे सालीति वा बीहिगोहूमजवजवजवाइ वा कलमनसूरमुग्गमास तिलकुलत्थणिप्फावआलिसद्गअयसि कुसुंभ को वकंगुषरगराळगसणसरिसवमूलगबीआइ वा हूँ, हंता अस्थि, णो वेष णं वेसि मणुआणं परिभोगत्ताए हवमागच्छंति, अस्थि णं भंते ! भरहे बासे गड्ढाइ वा दरीओवायपवायविसमविनलाइ वा ?, णो इट्टे समट्ठे, भरहे वासे बहुसमरमणिजे भूमिभागे पण्णत्ते से जहाणामए आलिंगपुक्खरे वा०, अस्थि णं भंते! भरदे वासे खाणूइ वा कंटगतणयकयवराइ वा पतकयवराइ वा ? णो णट्ठे समट्ठे, वनगयखाणुकंटगतणकयवरपत्तकयवरा णं सा सभा पण्णत्ता, अत्थि णं भंते! भरछे वासे डंसाइ वा मसगाइ वा जूआइ वा लिक्खाइ वा ढिकुणाइ बापिसुभाइ वा !, णो णट्ठे समट्टे, धवगयडंसमसगजूअलिक्खर्टिकुणपिसुआ उद्दवविरहिआ णं सा समा पण्णत्ता, अस्थि णं भंते! भर अद्दी वा अयगराइ वा ?, हंता अस्थि, णो देव णं तेसिं मणुमणं आवाहं वा जाब पगइभद्दया णं ते वालगगणा पण्णत्ता, अस्थि णं भंते ! भरहे डिबाइ वा डमराइ वा कलहयोलखारवइरमहाजुढाइ वा महासंगामाइ वा महासत्यपडणाइ वा महापुरिसपढणा बा, गोयमा ! णो ण समढे, ववगववेराणुबंधा णं ते मणुआ पण्णत्ता!, अस्थि णं भंते! भरहे वासे दुब्भूआणि वा कुलरोगाइ वा गामरोगाइ वा मंडळरोगाइ वा पोट्ट० सीसवेअणाइ वा कष्णोअच्छिणइदं तवेअणाइ वा कासाइ वा सासाइ वा सोसाइ वा दाहाइ वा रिसाइ वा अजीरगाइ वा दओदराइ वा पंडुरोगाइ वा भगंदराइ वा एगाहिआइ वा बेआहिआइ वा तेआहिआइ वा चउत्थाहिआइ बा इंदुग्गहाइ वा धणुग्गद्दाइ वा संदग्गहाइ वा कुमारग्गद्दाइ वा जक्खमाहाइ वा भूअग्गहाइ वा मच्छसूलाइ वा हिमयसूलाई वा पोट्ट० कुच्छि० जोणिसूलाइ वा गाममारी वा जाव सण्णिवेसमारीद वा पाणिक्खया जणक्खया कुलक्सया वसणन्भूअमणारिआ !, गोयमा ! णो णट्टे समद्वे, ववगयरोगायंका णं ते मणुआ पण्णत्ता समणाउसो ! (सूत्रं २४ )
Fur Fraternal Use Only
~ 243 ~
२वक्षस्कारे प्रथमारके नरावासा
दिव. सू.
२३-२४
॥१२०॥
jantarya