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आगम
(१८)
“जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्ति:) वक्षस्कार [२], ---------
----------------------- मूल [१९] + गाथा: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१८], उपांग सूत्र - [७] "जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति' मूलं एवं शान्तिचन्द्र विहित वृत्ति:
प्रत
श्रीजम्बूद्वीपशान्तिचन्द्रीयो वृतिः
सूत्रांक [१९]
वक्षस्कारे पल्यापमप्ररूपणा .१९
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॥१२॥
गाथा:
परमाणू दुबिहे पण्णत्ते, तंजहा-सुहुमे अ वावहारिए अ, अर्णताणं सुहुमपरमाणुपुगालाणं समुदयसमिइसमागमेणं बाबहारिए परमाणु णिएफजइ तत्व णो सत्यं कमइ-'सत्येण सुतिक्खेणवि छेतुं मित्तुं च ज फिर ण सभा । सं परमाणु सिद्धा वयंति आई पमाणाणं ॥१॥ वावहारिअपरमाणूणं समुदयसमिइसमागमेणं सा एगा उस्साहसहिआइ वा सण्डिसहिआइ वा उद्धरेणूइ वा तसरेणूइ वा रहरेणूइ वा वालग्गेइ वा लिक्खाइ वा जूआइ वा जमाझेह वा उस्सेइंगुले इ वा, अट्ट उस्सण्डसहिआओ सा एगा सहसण्हिया अट्ट सण्ड्सहिआओ सा एगा उद्धरेणू अह लोमोसा एगा तसरेणू अट्ट तसरेणूओ सा एगा रहरेणू अहरहरेणूओ से एगे देवकुरुत्तरकुराण मणुस्साणं बालगे अट्ठ देवकुरुत्तरकुराण मणुस्साण वाळमगा से एगे हरिवासरम्मयवासाण मणुस्साणं वालग्गे एवं हेमक्यहेरण्णक्याण मणुस्साणं पुषविदेशवर विवेहाणं मणुस्साण वालग्गा सा एगा लिक्खा अट्ट लिक्खाभोसा एगा जूभा जह जूभाओ से एगे जवमझे अह जवमझा से एगे अंगुले एतेणं अंगुलप्पमाणेणं छ अंगुलाई पाओ वारस अंगुलाइ वित्थी चउबीसं अंगुलाई रयणी भक्षयालीसं अंगुलाई कुच्छी छण्णउद् अंगुलाई से एगे अक्खेइ वा दंडेइ वा धणूह वा जुगेड या मुसलेइ वा णालिआइ वा, एतेणं घणुप्पमाणेणं दो घणुसहस्साई गाउ चत्तारि गाउआई जोअण, एएणं जोअणपमाणेणं जे पाले जोअणं आयामविक्वंभेणं जोयणं उर्दु वर्ण तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, से णे पल्ले एपाहिजबेहियतेहिअ उकोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं संमढे सणिचिए भरिए वालग्गकोडीणं ते णं वालग्गा णो कुत्थेना णो परिविद्धंसेजा, णो अग्गी डहेजा, णो वाए हरेजा, णो पूइत्ताए हबमागच्छेजा, तभो णं वाससए २ एगमेगं वालम्ग अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे जीरए णिवे णिट्ठिए भवइ से तं पलिमोवमे । एएसि पहाणं कोडाकोडी हवेज दसगुणिा । तं सागरोवमस्स उ एगस्स भवे परीमाणं ॥ १॥ एएणं सागरोवमप्पमाणेणं चत्तारि
दीप अनुक्रम [२७-३२]
Reeseseseseseenese
॥९२
203930000
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