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________________ आगम चन्द्रप्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) (१७) प्राभत [२], .............-- प्राभतप्राभत [1. -------------------- मलं [२१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१७], उपांग सूत्र - [६] "चन्द्रप्रज्ञप्ति" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्तिः (मल०) सूत्रांक ॥४५॥ [२१] दीप अनुक्रम पाओ सूरिए पुदविकायंसि उत्तिट्टइ, एगे एव०५, एगे पुण एवमाहेसु ता पुरथिमिल्लाओ लोयंताओ पाओग्राभूत मूरिए आउकायंसि उत्तिइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ करेत्ता पचत्थिमंसि लोयंतंसि पाओ १प्राभृतसूरिए आउकायंसि विद्धसंति, एगे एवमाहंसु ६, एगे पुण एवमाहंसु-ता पुरथिमातो लोगंतातो पाओ प्राभृतं सूरिए आपकार्यसि उत्तिट्ठति, से णं इमं तिरिय लोयं तिरियं करेति २सा पञ्चस्थिमंसि लोयंतंसि सायं सूरिए आउकायंसि पविसह, पविसित्ता अहे पडियागच्छति २त्ता पुणरवि अवरभूपुरत्धिमातो लोयंतातो पादो सूरिए आउकायंसि उत्तिट्ठति, एगे एव०७, एगे पुण एवमाहंसु-ता पुरस्थिमातो लोयंताओ बहूई जोयणाई यह जोयणसाई बहूई जोयणसहस्साई उहुं दूरं उप्पतित्ता एत्य गं पातो सूरिए आगासंसि उत्तिदृति, से गं इमं दाहिणहुं लोयं तिरियं करेति करेसा उत्तरडलोयं तमेव रातो, से णं इमं उत्सरलोयं तिरियं करेइ २त्ता दाहिणहलोयं तमेव राओ, से णं इमाई दाहिणुत्तरडलोयाई तिरियं करेइ करित्ता पुरस्थिमाओ लोयंतातो पहुई जोयणाई बहुयाई जोयणसताई बहूई- जोयणसहस्साई उहं दूर उप्पतित्ता एत्थ णं पातो सूरिए आगासंसि उत्तिकृति एगे एवमाहंसु८ । वयं पुण एवं वयामो, ताग अंबुवस्स २ पाइणपडीणायतओदीणदाहिणायताए जीवाए मंडलं चउबीसेणं सतेणं छेत्ता दाहिणपुर-1४॥ ४५ ॥ च्छिमंसि उत्तरपञ्चस्थिमंसि य चउम्भागमंडलंसि इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जातो भूमिभा-1 गातो अट्ठ जोयणसताई उडे उष्पतित्सा एत्थ णं पादो दुवे सूरिया उसिटुंति, ते णं इमाई दाहिणुसराई [३५] ~97~
SR No.004117
Book TitleAagam 17 CHANDRA PRAGYAPTI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages602
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_chandrapragnapti
File Size129 MB
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