________________ आगम (17) "चन्द्रप्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) प्राभृत [20], --- --------- प्राभृतप्राभृत -], --------------- मूलं [107] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [17], उपांग सूत्र - [6] “चन्द्रप्रज्ञप्ति" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: / प्रत सूर्यप्रज्ञd सूत्रांक [108] प्तिवृत्तिः (मल०) वृत्तिकारेण कृता अंतिम मंगल-आदि गाथा: // 297|| दीप अनुक्रम [217] वन्दे यथास्थिताशेषपदार्थप्रतिभासकम् / नित्योदितं तमोऽस्पृश्य, जैनसिद्धान्तभास्करम् // 1 // विजयन्तां गुणगुरवो गुरवो जिनतीर्थ भासनैकपराः / यद्वचनगुणादहमपि जातो लेशेन पटुबुद्धिः // 2 // चंद्र विज्ञप्तिमिमामतिगम्भीरां विवृण्वता कुशलम् / यदवापि मलयगिरिणा साधुजनस्तेन भवतु कृती // 3 // PORRIER2ERICARDAMADRAMANARADHET इति श्रीमलयगिरिविरचिता टीकायुक्ता चन्द्रप्रज्ञप्ति: समाप्ता // SARERatanimamENT मुनिश्री दीपरत्नसागरेण पुन: संपादित: (आगमसूत्र 17) “चन्द्रप्रज्ञप्ति” परिसमाप्त: ~601~