SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 501
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (१६) “सूर्यप्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) प्राभृत [१५], -------------------- प्राभृतप्राभृत [-], -------------------- मूलं [८४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१६], उपांग सूत्र - [9] "सूर्यप्रज्ञप्ति" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्राक [८४] - दीप से णं गतिमाताए केवतियं विसेसेति ?, ता पंच भागे विसेसेति, ता जना णं चंदं गतिसमावणं अभीयी-18 णक्खत्ते णं गतिसमावण्णे पुरच्छिमाते भागाते समासादेति, पुरच्छिमाते भागाते समासादित्ता णव मुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तविभागे मुहुत्तस्स चंदेण सद्धिं जोएति, जो जोपत्ता जोयं अणुपरिपट्टति, जो ६२ सा विप्पजहाति विगतजोई यावि भवति, ता जता ण चंदं गतिसमावणं सवणे णक्खो गतिसमावणे &|पुरच्छिमाति भागादे समासादेति, पुरच्छिमाते भागाते समासादेत्ता तीसं मुहत्ते चंदेण सद्धिं जो जोएति १२ जोयं अणुपरियति जो० २ त्ता विप्पजहति विगतजोई यावि भवइ, एवं एएणं अभिलावणं णेतवं, पण्णसरसमुहत्ताई तीसतिमुहत्ताई पणयालीसमुहत्ताई भाणितबाई जाब उत्तरासादा। ता जता णं चंदं । गतिसमावणं गहे गतिसमावणे पुरच्छिमाते भागाते समासादेति पुर०२त्ता चंदेणं सद्धिं जोग जुजति हा सा जोगं अणुपरिषदृति त्ता विष्पजह ति विगतजोई यावि भवति । ता जया णं सूरं गतिसमावणं अभीगीणक्खत्ते गतिसमावणे पुरच्छिमाते भागाते समासादेति, पुर०२ सा चत्तारि अहोरत्ते छच्च मुहुत्ते &ारेणं सद्धिं जोपं जोएति २ जोयं अणुपरियति २त्ता विजेते विगतजोगी यावि भवति, एवं अहोरत्ता छ एकवीसं मुहत्ता य तेरस अहोरत्ता बारस मुहुत्ता य वीसं अहोरत्ता तिष्णि मुहुत्ता य सधे भणितबा। जाय जता णं सरं गतिसमावणं उत्तरासाढाणक्खत्ते गतिसमावण्णे पुरच्छिमाते भागाते समासादेति। पु० २ सा वीसं अहोरत्ते तिपिण यमुहुत्ते सूरेण सद्धिं जोयं जोएति जो० २ ता जोयं अणुपरियति जो०२/ --- अनुक्रम [११२] - - - ~500~
SR No.004116
Book TitleAagam 16 SOORYA PRAGYAPTI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages600
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_suryapragnapti
File Size128 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy