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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [२३], --------------- उद्देशक: [२], -------------- दारं [-], -------------- मूलं [२९४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत
प्रज्ञापनाया:मलय० वृत्ती.
मस्थितिः
सूत्रांक [२९४]
॥४७८॥
दीप
नामाएवि दो सत्तभागा, साहारणसरीरनामाए जहा सुहुमस्स, थिरनामाए एग सत्तभागं अधिरनामाए दो सुमनामाए
N२३ कर्मवएगो असुभनामाए दो सुभगनामाए एगो दूभगनामाए दो सूसरनामाए एगो दूसरनामाए दो आदिजनामाए एगो । अणाइजनामाए दो जसोकित्तिनामाए जह० अट्ठ मुहुत्ता उक्को० दस सागरोवमकोडाकोडीतो दस वाससताई अबाहा०, अजसोकित्तिनामाए पुच्छा, गो०! जहा अप्पसस्थविहायोगतिनामस्स, एवं णिम्माणनामाएवि, तित्थगरणामाए णं
सू. २९४ पुच्छा, गो०! जह० अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ उकोसेणवि अंतो० कोडाकोडीओ, एवं जत्थ एगो सत्तभागो तत्य उक्कोसेणं दस सागरोबमकोडाकोडीओ दस बाससताई अबाहा०, जत्थ दो सत्तभागा तत्थ उको० वीसं सागरोवमकोडा- कोडीओ वीस य वाससयांइ अबाहा, उच्चागोयस्स णं पुच्छा, गो० ! जहन्नेणं अट्ठ मुहुत्ता उ० दस सागरोवमकोडाकोडीओ, दस य वाससताई अवाहा०, णीयागोत्तरस पुच्छा, गो०! जहा अप्पसत्थविहायोगतिनामस्स, अंतराए णे पुच्छा, गो!जह अंतो० उको तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ तिष्णि य वाससहस्साई अवाहा, अबाहूणिया कम्महिती कम्मनिसेगो। (सूत्रं २९४)
'णाणावरणिजस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिती पं.' इति ज्ञानावरणीयस्य मतिश्रुतापधिमनःपर्याय- ॥४७८॥ | केवलावरणभेदतः पञ्चप्रकारस्य कर्मणो भदन्त ! कियन्तं कालं यावत् स्थितिः प्रज्ञप्ता १, एवमुक्त भगवानाहगौतम ! जघन्येनान्तर्मुहूर्त, तच सर्वलघु सूक्ष्मसम्परायस क्षपकस्य खगुणस्थानकचरमसमये वत्तेमानस्स वेदितव्यं,
अनुक्रम [५४१]
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