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आगम
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [२३], --------------- उद्देशक: [२], ------------- दारं [-], -------------- मूलं [२९४]
प्रज्ञापनाया मलयवृत्ती.
२३कर्मबन्धपदे क६ मंस्थितिः
सू. २९४
प्रत सूत्रांक [२९४]
॥४७६॥
उक्को. पण्णरस सागरोवमकोडाकोडीतो पण्णारस वाससताई अबाहा०, पुरिसवेदस्स णं पुच्छा, गो! जह० अट्ठ संवच्छराति उको० दस सागरोवमकोडाकोडीतो दस वाससताई अवाहा जाव णिसेगो, णपुंसमवेदस्स में पुच्छा, गो०! जह० सागरोवमस्स दोणि सचभागा पलितोवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणया, उकोसेणं पीसं सागरोवमकोडाकोडीतो बीस य वाससताई अवाहा०, हासरतीणं पुच्छा गो! जह. सागरोवमस्स एकं सत्तभार्ग पलितोवमस्स असंखेजतिभागणं ऊर्ण उको दस सागरोवमकोडाकोडीओ दस वाससताई अबाहा, अरतिभयसोगदुगुंछाणं पुच्छा, गो०। जह० सागरोवमस्स दोणि सत्तभागा पलितोबमस्स असंखेजतिभागेणं उणया, उको बीस सागरोवमकोडाकोडीतो बीसं वाससताई अबाहा०, नेरइयाउयस्स णं पुच्छा, गो.! जह० दस वाससहस्साई अंतोमुहुत्तमभहियाई उको तेत्तीसं सागरोवमाई पुवकोडीतिभागमभहियाति, तिरिक्खजोणिवाउयस्स पुच्छा, गो! जह० अंतो० उको तिष्णि पलितोवमाई पुवकोडितिभागमभहियाई, एवं मणसाउयस्सवि, देवाउयस्स जहा नेरइयाउयस्स ठितित्ति, निरयगतिनामए ण पुच्छा गो०। जह० सागरोवमसहस्सस्स दो सत्तभागा पलितोवमस्स असंखिजतिभागेणं ऊगया, उकोसेणं वीर्स सागरोवमकोडाकोडीतो वीसं वाससताई अवाहा। तिरियगतिनामए जहा नपुंसगवेदस्स, मणुयगतिनामते पुच्छा, ज. सागरोवमस्स दिवर्द्ध सत्तभागं पलितोवमस्स असंखेजतिभागेणं ऊणगं उको. पण्णरस सागरोवमकोडाकोडीतो पण्णरसवाससताई अवाहा । देवगतिनामए णं पुच्छा, गो! जह० सागरोवमसहस्सस्स एणं सचभाग पलितोवमस्स असंखेजतिभागेणं ऊणयं उको जहा पुरिसवेदस्स, एगिदियजातिनामए गं पुच्छा, गो! जह० सागरोवमस्स दोणि सत्तभागा पलि
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दीप अनुक्रम [५४१]
॥४७६॥
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