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________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१], --------------- उद्देशक: [-], --------------- दारं [-], --------------- मूलं [२९] + गाथा मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: सूत्रांक प्रज्ञापना- या:मल-10 य० वृत्ती. [२९] १ प्रज्ञापनापदे त्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियपु.(सू. २८-२९) ॥४२॥ गाथा संसारसमापनजीवप्रज्ञापना, सम्पत्ति चतुरिन्द्रियसंसारसमापन्नजीवप्रज्ञापनामाहसे किं तं चउरिदियसंसारसभावनजीवपनवणा , २ अणेगविहा प०, त-अंधिय पत्तिय मच्छिय मसगा कीडे तहा पयंगे य। ढेकुथा कुकट कुकुह नंदावचे व सिंगिरडे ॥१०६॥ किण्हपत्ता नीलपत्ता लोहियपत्ता हालिदपत्ता सुकिल्लपत्ता चित्तपक्खा विचित्तपक्खा ओहंजलिया जलचारिया मंभीरा णीणिया तंतवा अच्छिरोडा अच्छिवेहा सारंमा नेउरा दोला भमरा भरिली जरूला तोहा विषा पत्तविच्छ्या छाणविच्छुया जलविच्छ्या पियंगाला कणगा गोमयकीडा, जे यावचे तहप्पगारा, सोते संमच्छिमा नपुंसगा, ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, त०-पञ्जत्तगा य अपअत्तगा य, एपसिणं एवमाझ्याण चरिदियाणं पजत्तापजत्ताणं नव जाइकुलकोडिजोणिप्पमुहसयसहस्साई भवंतीतिमक्खायं, से सं चरिंदियसंसारसमावमजीवपभरणा ।। (०२९) एतेऽपि चतुरिन्द्रिया लोकतः प्रस्खेतम्याः, एतेषां च पर्याप्तापर्याप्तानां सर्वसचथया जातिकुलकोटीनां नव लक्षा भवन्ति, शेषा अक्षरगमनिका प्राग्वत्, उपसंहारमाह-'सेत्त' मिलादि । उक्ता चतुरिन्द्रियसंसारसमापन्नजीवनज्ञापना, सम्प्रति पञ्चेन्द्रियसंसारसमापनजीवप्रज्ञापनामाह से कि ते पंचेदियसंसारसमावनजीवपावणा १,२ चउबिहा पं०,०-नेरइयपंचिदियसंसारसमावनजीवपन्नवणा, तिरिक्खजोणियपंचिंदियसंसारसमावनजीवपनवणा मणुस्सपचिदियसंसारसमावनजीवपन्नवणा देवपंचिदियसंसारसमावसजीवपनवणा (१.१०) दीप अनुक्रम [१५१ S ॥४२॥ -१५३] SAREarathiAR Imliumstaram.org | अत्र पञ्चइन्द्रिय-जीवस्य प्रज्ञापना आरभ्यते ~88~
SR No.004115
Book TitleAagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1227
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size261 MB
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