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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१७], -------------- उद्देशक: [२], -------------- दारं [-], -------------- मूलं २१७-२१८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रज्ञापनाया:मल
प्रत सूत्रांक [२१७-२१८]
१७ लेश्यापदे उद्देशः
AAH
॥३४५॥
दीप अनुक्रम [४५४-४५५]
एएसिणं मंते ! नेरहयाणं कण्हलेसाणं नीललेस्साणं काउलेस्साण य कयरे २ हिंतो अप्पा वा ४१, मो० ! सबथोवा नेरइया कण्हलेसा नीललेसा असं काउले. असं० (सूत्र २१७) एतेसि गं भंते ! तिरिक्खजोणियाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेसाण य कयरे २१, अप्पा वा ४ गो० स० तिरिक्खजोणिया सुकलेसा एवं जहा ओहिया नवरं अलेस [सलेस बज्जा, एएसि एगिदियाणं कण्ह० नील काउ० तेउलेस्साण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा ४१, गो०! सबत्थोवा एगिदिया तेउलेस्सा काउले० अणं नीलले. विसेसा कण्हलेसा० (विसेसा०)। एएसिणं भंते ! पुढविकाइयाणं कण्हलेसाणं जाव तेउलेस्साण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा ४१, गो०! जहा ओहिया एगिदिया नवरं काउलेस्सा असंखेनगुणा, एवं आउकाइयाणवि, एतेसि भंते ! तेउकाइयाणं कण्हलेस्साणं नीललेस्साणं काउलेस्साण य कयरे कयरेहितो अप्पा बा ४१, गो०। सबथोवा तेउकाइया काउलेस्सा नीललेस्सा विसेसाहिया कण्हलेस्सा विसेसाहिया, एवं वाउकाइयाणवि, एतेसि ण मंते ! वणस्सइकाइयाणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य जहा एगिदिय० ओहियाणं, बेइंदियाणं तेइंदियाणं चरिंदियाणं जहा तेउकाइयाणं, एएसिणं भंते ! पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं कण्हलेसाणं एवं जाव सुक्कलेसाण य कयरे कयरेहिती अप्पा वा ४१, गो०! जहा ओहियाणं तिरिक्खजोणियाणं नवरं काउलेस्सा असंखेजगुणा, समुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाण जहा तेउकाइयाण, गम्भवतियपंचेदियतिरिक्खजोणियाणं जहा ओहियाण तिरिक्खजोणियाणं नवरं काउलेस्सा संखेजगुणा, एवं तिरिक्खजोणिणीणवि, एएसिणं भंते ! संमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं गम्भवतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाण य कण्ह० जाव मुकलेसाण य कयरे कयरहितो अप्पा वा ४१, गो०! सबथोवा गम्भवफंतियपंचेदियतिरि० मुक्का
I४॥३४५॥
SAREauratonintamarnama
लेश्या विषयक अल्प-बहुत्वं
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