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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१७], -------------- उद्देशक: [२], -------------- दारं [-], -------------- मूलं २१४-२१६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत सूत्रांक
[२१४
-२१६]
दीप अनुक्रम
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नेरइयाणं । पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा, गो०! छल्लेस्सा-कण्ह० जाव सुक्कलेसा, समुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा, गो० ! जहा नेरइयाणं, गन्भवतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा, गो.! छल्लेसा कण्ह० जाब सुक्कलेसा, तिरिक्खजोगिणीणं पुच्छा, गो०! छल्लेसा एयाओ चेव । मण्साणं पुच्छा, गो०1 छल्लेसा एयाओ चेव, संमुच्छिममणुस्साणं पुच्छा, गो. जहा नेरइयाणं, गन्भवतियमणुस्साणं पुच्छा, गो० छल्लेसाओ तं०- कण्ह० जाव सुक्कलेसा, मणुस्सीणं पुच्छा, गो! एवं चेव । देवाणं पुच्छा, गोछ एयाओ चेव, देवीणं पुच्छा, गो! चत्तारि कण्ह जाव तेउलेस्सा, भवणवासीणं भंते ! देवाणं पुच्छा, गो० एवं चेव, एवं भवणवासिणीणवि, वाणमंतरदेवाणं पुच्छा, गो! एवं चेव, वाणमंतरीणवि, जोइसियाण पुच्छा, गो०! एगा तेउलेसा, एवं जोइसिणीणवि । वेमाणियाण पुच्छा, गो! तिन्नि, त-उ० पम्ह सुक्कलेस्सा, वेमाणिणीणं पुच्छा, गो०! एगा तेउलेस्सा (सूत्र २१५) एतेसि णं भंते ! जीवाणं सलेस्साणं कण्हलेसाणं जाव सुकलेस्साणं अलेस्साण य कयरे २ अप्पा वा ४१, गो०! सबत्थोवा जीवा सुक्कलेस्सा पम्हलेस्सा संखेजगु तेउलेस्सा संखेजगु० अलेस्सा अणंतगु० काउलेसा अर्णतगु० नीललेसा विसेसाहिया कण्हलेसा विसेसाहिया सलेस्सा विसेसाहिया (सूत्र २१६) 'कइ गं भंते ! लेसाओ' इत्यादि, कः पुनरस्य सूत्रस्य सम्बन्ध इति चेद् ?, उच्यते, उक्तं प्रथमोद्देशके 'सलेसाणं भंते ! नेरइया' इत्यादि इह तु ता एव लेश्याश्चिन्त्यन्ते 'कद लेसा' इति, तत्र लेश्याः प्राग्निरूपितशब्दार्थाः 'कइति
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