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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१५], -------------- उद्देशक: [२], -------------- दारं [-], -------------- मूलं [२०१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
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प्रत सूत्रांक [२०१]
प्रज्ञापनायाः मलय० वृत्ती. ॥३१॥
१५ इन्द्रियपदे उद्देशः २
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दीप अनुक्रम [४३७]
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जहा नेरइयस्स, एगमेगस्स णं भंते ! विजयवेजयंतजयंतअपराजियदेवस्स केवइया दबिंदिया अतीता ?, गो० अणंता, केवड्या बद्धेल्लगा ?, अह, केवइया पुरेक्खडा ?, अट्ट वा सोलस वा चउदीसा वा संखेजा था, सबसिद्धगदेवस्स अतीता अणंता बद्धेल्लगा अढ पुरेक्खडा अट्ठ । नेरइयाणं भंते! केवइया दविंदिया अतीता, गो०! अणता, केवड्या बढेगा, गो० असंखेजा, फेवइया पुरेक्खडा, गो० अणंता, एवं जाव मेवेज्जगदेवाणं, नवरं मणसाणं बद्धेल्लगा सिय संखेज्जा सिय असंखेजा, विजयवेजयंतजयंतअपराजितदेवाणं पुच्छा, गो०! अतीता अर्णता बद्धेल्लगा असंखेजा पुरेक्खडा असंखेज्जा, सबढसिद्धगदेवाणं पुच्छा, गो ! अतीता अर्णता, बदल्लगा संखेज्जा, पुरेक्खडा संखेजा। एगमेगस्स णं नेरइयस्स नेरइयत्ते केवइया दबिंदिया अतीता ?, गो! अर्णता, केवइया बद्धेल्लगा, गो० ! अह, केवइया पुरेक्खडा, गो.! कस्सइ अस्थि कस्सइ नत्थि, जस्सत्थि अट्ट वा सोलस वा चउवीसा वा संखेजा वा असंखेजा वा अणंता वा । एगमेगस्सणं नेरइयस्स असुरकुमारते केवइया दविदिया अतीता, गो०! अणंता, केवइया बहेल्लगा, गो०! णस्थि, केवइया पुरेक्खडा, गो०! कस्सइ अस्थि कस्सइ नत्थि, जस्सस्थि अह वा सोलस वा चउवीसा वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा, एवं जाव थणियकुमारत्ति । एगमेगस्स ण नेरइयस्स पुढविकाइयचे फेवड्या दविदिया अतीता, गो! अणंता, केवड्या बद्धेल्लगा, गो०! णत्थि, केवइया पुरेक्खडा, गो०! कस्सइ अस्थि कस्सइ नस्थि, जस्सस्थि एको वादो वा तिण्णि वा संखेजा वा असंखेजा वा अणंता चा, एवं जाव वणस्सइकाइयत्ते । एगमेगस्स णं भंते ! नेरदयस्स बेइंदियत्ते केवइया दविदिया अतीता, गो०! अणंता, केवइया बद्धेल्लगा, गोपत्थि, केवइया पुरेक्खडा, गो. कस्सइ
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॥३१२।।
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