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आगम
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“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१५], -------------- उद्देशक: [१], -------------- दारं [-], -------------- मूलं [१९३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रज्ञापनाया:मलय. वृत्ती.
१५इन्द्रियपदे उद्देशः १
प्रत सूत्रांक [१९३]
॥२९॥
दीप अनुक्रम [४२३]
99090095799999
भंते ! बेईदियाणं जिभिदियफासिंदियाणं ओगाहणद्वयाते पदेसहयाते ओगाहणपदेसद्वयाते कयरेशहितो अ०४१, गो०! सत्वत्थोवे बेइंदिया जिभिदिए ओगाहणद्वयाते फासिदिए ओगाहणहयाते संखेजगुणे पदेसहयाते सवस्थोवे बेइंदियाणं जिम्भिदिते पएसहयाए फासिदिए संसेजगुणे ओमाहणपएसद्वयाते सवत्थोवे बेइंदियस्स जिभिदिए ओगाहणहयाते फासिदिए ओगाहणट्ठयाते संखेजगुणे कासिदियस्स ओगाहणट्ठयातहितो जिम्मिदिए पएसट्टयाते अणंतगुणा फासिदिए पएसयाए संखेजगुणा, बेइंदियाणं भंते ! जिम्भिदियस्स केवइया कक्खडगरुयगुणा पं०१ गो०! अणंता, एवं फार्सिदियस्सवि, एवं मउयल हुयगुणावि, एतेसिणं भंते! बेइंदियाणं जिभिदियफासिदियाणं कक्खडगरुयगुणाणं मउयलहुयगुणाण कक्खडगुरुयगुणमउयलहुयगुणाण य कतरे हितो अ०४१, गो! सबथोवा बेइंदियाण जिभिदियरस कक्खडगरुयगुणा फासिदियस्स कक्खडगरुयगुणा अणंतगुणा, फासिंदियरस कक्खडगरुयगुणेहिंतो तस्स चेव मउयलहुय० अणंतगुणा जिभिदियस्स मउयलहुयगुणा अर्णतगुणा, एवं जाव चउरिदियत्ति, नवरं इंदियपरिवुड्डी कातबा, तेइंदियार्ण धार्णिदिए थोवे चरिंदियाणं चक्विंदिए थोवे, सेसं तं चेव ।। पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं मनसाण य जहा नेरइयाणं, गवरं कासिदिए छविहसंठाणसंठिते पं० सं०-समचउरंसे निग्गोह परिमंडले सादी खुजे चामणे हुंडे ।। वाणमंतरजोइसियचेमाणियाणं जहा अमुरकुमाराणं (सूत्रं १९३)
'नेरइयाणं भंते !' इत्यादि सुगम, नवरं 'नेरइयाणं भंते ! फासिं दिए किंसंठिए पण्णत्ते' इत्यादि, द्विविधं हि नैर-1 यिकाणां शरीर-भवधारणीयमुत्तरक्रियं च, तत्र भवधारणीयं तेषां भवखभावत एव निर्मूलविलुप्तपक्षोत्पाटितस-1
करeerce
२१७॥
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