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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [६], ------------- उद्देशक: [-], ----------- दारं [५], ----------- मूलं [१२९-१३७] + गाथा: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
[१२९
-१३७]
गाथा:
पुढवि । एसो परमोवाओ चोद्धच्चो नरगपुढवीण ॥२॥(स्त्रं १२९) । असुरकुमारा ण भंते ! कतोहिंतो उववअंति, गोयमा ! नो नेरइएहितो उववज्जति तिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति मणुस्सेहिंतो उवरजति नो देवेहितो उववजंति, एवं जेहिंतो नेरइयाणं उववाओ तेहितो असुरकुमाराणवि भाणियहो, नवरं असंखेजवासाउयअकम्मभूमगअंतरदीवगमणुस्सतिरि
खजोणिएहितोवि उववअंति, सेसंत चेव, एवं जाव थणियकुमारामाणियबा।। (सूत्रं१३०) पुढविकाइया भंते ! कतोहितो उववअंति किं नेरदपहिंतो जाव देवेहितो उववअंति, गोयमा ! नो नेरहएहिंतो उववअंति तिरिक्खजोणिएहिंतो मणुस्सेहिंतो देवेहिंतोवि उववजंति, जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति किं एगिदियतिरिक्खजोणिएहितो उपवजंति जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणियहिंतो उववञ्जति ?, मोयमा! एगिदियतिरिक्खजोणिएहितोचि जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतोषि उवबज्जति,जइ एगिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति किं पुढविकाइएहिंतो जाव वणस्सइकाइएहिंतो उववअंति?, गोयमा! पुढविकाइपहिंतोवि जाव वणस्सइकाहपहिंतोवि उ०, जइ पुढविकाइएहितो उववअंति कि सुहमपुढविकाइएहितो उववर्जति बायरघुढविकाइएहिंतो उववजंति ?, गोयमा!दोहिंतोवि उववअंति, जइ सुहमपुडविकाइएहितो उवयति किं पजत्तपुढवीकाइएहिंतो उववअंति अपजत्तपुढवीकाइएहिंतो उववजंति !, गोयमा! दोहिंतोवि उपवजंति, जइ बायरपुढविकाइएहितो उववअंति किं पजत्तएहितो उ० अपज्जत्तपहिंतो उववज्जति ?, गोयमा ! दोहितोवि उववअंति, एवं जाव वणस्सइकाइया चउकएणं भेदेण उववाएयच्या, जइ बेइंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववअंति किं पजत्तयवेइंदिएहितो उववअंति अपजत्तयबेईदिएहितो उववज्जति !, गोयमा! दोहितोवि उववजंति, एवं तेइंदियचउरिदिएहितोवि उववजंति, जा पंचिंदिय
दीप अनुक्रम [३३४-३४४]
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