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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [६], ------------ उद्देशक: [-], ----------- दारं [५], ----------- मूलं [१२९-१३७] + गाथा: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक [१२९
-१३७]
गाथा:
उप्पयथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितोऽवि उववअंति, जइ समुच्छिमचउप्पयथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववजंति किं पअचगसंमुच्छिमचउप्पयथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति अपजत्तगचउप्पयथलयरसमुच्छिमपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उपवअंति ?, गोयमा! पजत्तसमुच्छिमचउप्पयथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववर्जति नो अपज्जत्लगसमुच्छिमचउप्पयथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववअंति, जइ गब्भवतियच उप्पयथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववजति किं संखेजवासाउअगम्भवतियचउप्पयथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति असंखेजवासाउयगन्भवतियचउप्पयथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववअंति, गोयमा ! संखेजवासाउ एहितो उववजंति नो असंखेजवासाउएहिंतो उववअंति, जइ संखेजवासाउयगम्भवतियचउप्पयथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववति किं पजत्तगसंखेज्जवासाउयगम्भवतियचउप्पयथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उबवजंति अपजत्तगसंखेजवासाउयगम्भवतियचउप्पयथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उपवअंति, गोयमा ! पजत्तेहिंतो उववजति नो अपजनसंखेजवासाउएहिंतो उववअंति, जइ परिसप्पथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववअंति किं उरपरिसप्पथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति भुयपरिसप्पथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति', गोयमा! दोहिंतोवि उववअंति, जइ उरपरिसप्पथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववअंति किं संमच्छिमउरपरिसप्पथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववअंति गम्भवतियउरपरिसप्पथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववअंति', गोयमा ! समुच्छिमेहिंतो उबवजंति गम्भवकतिएहितोवि उववअंति, जइ समुच्छिमउरपरिसप्पथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणि
दीप अनुक्रम [३३४-३४४]
Celeese
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