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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [५], --------------- उद्देशक: [-], -------------- दारं [-], -------------- मूलं [११८-१२१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक [११८
-१२१]
तुल्ले पएसट्टयाए तुल्ले ओगाहणद्वयाए तुल्ले ठिईए तुल्ले वण्णाइ दुफासेहि य छवाणवडिए, एवं उकोसठिइएवि, अजहन्नमणुकोसठिइएवि एवं चेव नवरं ठिईए चउहाणवडिए, जहन्नठिइयाणं दुपएसियाणं पुच्छा, गोयमा ! अर्णता पजवा पन्नता, से केणटुणं भंते! एवं बुच्चइ, गोयमा! जहन्नठिइए दुपएसिए जहन्नठिइयस्स दुपएसियस्स दबट्टयाए तुल्ले पएसट्ठयाए तुल्ले ओगाहणद्वयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अन्भहिए जइ हीणे पएसहीणे अह अम्भहिए पएसअन्महिए ठिईए तुल्ले वष्णाइ चउफासेहि य छटाणवडिए, एवं उकोसठिइएवि अजहन्नमणुकोसठिइएवि एवं चेव, नवरं ठिईए चउद्दाणवडिए, एवं जाव दसपएसिए, नवरं पएसपरिखुड्डी कायदा, ओगाहणट्टयाए तिसुवि गमएसु जाव दसपएसिए एवं पएसा परिवडिजंति, जहन्नठिइयाणं भंते ! संखिजपएसियाणं पुच्छा, गोयमा ! अर्णता पञ्जवा पन्नत्ता, से केणद्वेणं भंते ! एवं बुचइ !, गोयमा जहन्नठिइए संखिजपएसिए बंधे जहन्नठिइयस्स संखिज्जपएसियस्स खंधस्स दबट्टयाए तुल्ले पएसहयाए दुहाणवडिए
ओगाहणट्टयाए दुवाणवडिए ठिईए तुल्ले वण्णाइ चउफासेहि य छट्ठाणवडिए, एवं उकोसठिइएवि, अजहन्नमणुकोसठिइएवि एवं चेव, नवरं ठिईए चउहाणवडिए, जहन्नठिइयाणं असंखिजपएसियाणं पुच्छा, गोयमा ! अणंता पजवा पन्नत्ता, से केणवणं भंते ! एवं बुचद, गोयमा! जहन्नठिहए असंखिजपएसिए जहभाठिइयस्स असंखिजपएसियस्स दबट्टयाए तुल्ले पएसट्टयाए चउढाणवडिए ओगाहणद्वयाए चउहाणवडिए ठिइए तुल्ले वण्णाइ उवरिल्लचउफासेहि य छट्ठाणवडिए, एवं उकोसठिइएवि, अजहन्नमणुकोसठिइए एवं चेव नवरं ठिईए चउढाणवडिए, जहभाठियाणं अणंतपएसियाणं पुच्छा, गोयमा ! अणंता पजवा पत्रचा, से केणडेणं भंते । एवं बुचड़, गोयमा ! जहन्नाठिइए अणंतपएसिए जहन्नठिड्यस्स
दीप अनुक्रम [३२२-३२५]
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